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अन्त
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कवि राजमलजीकी पंचाध्यायीको लेकर चतुर्थ गुणस्थानवर्ती सम्यग्दृष्टिके ज्ञानचेतनाके सद्भाव-विषयक मान्यताकी समालोचना करते हुए लिखा है कि ज्ञानचेतना अष्टम गुणस्थान से पूर्व नहीं हो सकती । यह विषय अभी बहुत कुछ विवादास्पद है । पुस्तक उपयोगी है। छगई सफाई साधारण है ।
२. भावत्रयदर्शी - लेखक स्वर्गीय आचार्य श्री कुंथुमार | अनुवादक -- पं० लालराम शास्त्री । प्रकाशक, सेठ मगनलाल हीरालाल पाटनी पारिमा र्थिक ट्रस्ट फण्ड, मदनगंज (किशनगढ़) पृष्ठसंख्या, सब मिलाकर ३१६ | मूल्य, परिणामविशुद्धि ।
इस ग्रन्थ में आचार्य श्रीने संसारी जीवों के 'भावत्रय' में निष्पन्न होनेवाले परिपाक (फल) का अच्छा चित्रण किया है, जिसे ध्यान में रखते हुये प्रत्येक मानवको चाहिये कि वह अपने परिणाम अशुभ प्रवृत्ति हटाकर शुभमें नियोजित करे-लगावे और शुद्ध भाव प्राप्तिकी भावना करे। ऐसा करने से वह अशुभ परिणामसे निष्पन्न दुःखद परिपाक (फल) से बच सकता है और अपने जीवनको आदर्श तथा समुन्नत बना सकता हैं ।
यह ग्रंथ उक्त ट्रस्ट फडकी ओर से संचालित 'पाटनी दि० जैन ग्रन्थमाला' का द्वितीय पुष्प हैं। मेट मगनलाल हीरालालजीने धार्मिक भावनासे प्रेरित होकर पाँच लाखकी सम्पत्तिका यह ट्रस्ट कर दिया है, जिससे कितनी ही संस्थाओं का संचालन होरहा है और सामाजिक तथा धार्मिक कायों में उस का व्यय किया जाता है । जिसके लिये वे महान धन्यवाद के पात्र हैं। आशा है दूसरे महानुभाव भी अपनी चंचला लक्ष्मीको सफल करनेमें सेठ साहबका अनुसरण करेंगे और इसी तरह जैनशासन तथा जनसाहित्य के प्रचार एवं प्रसार में अपना तन मन और धन अर्पण करेंगे ।
सम्यग्दर्शनकी नई खोज - लेखक, स्वामी कर्मानन्द, प्रकाशक, जैन प्रगति ग्रन्थमाला, सहारनपुर, पृष्ठ संख्या ८०, मूल्य आठ आना !
इस पुस्तक में लेखक महाशयने अनेक जैनग्रंथोंका स्वाध्याय कर सम्यग्दर्शन और उसके उपशम-क्षयोपशमादि भेदों के स्वरूपपर यथेष्ट प्रकाश डाला है और स्वाध्यायप्रेमी विद्वानोंके लिये विविध प्रन्थोंक अनेक अवतरणको उद्धृत कर कितनी ही विचारकी सामग्री प्रस्तुत की है । सम्यग्दर्शनके व्यवहार-निश्चय भेदों और उनके स्वरूपपर भी विचार किया है। साथ ही,
४. मुक्तिका मार्ग- - ( सप्तास्वरूपशास्त्रप्रवचन) प्रवचनकर्ता श्रीकानजी स्वामी, अनुवादक, पं० परमेष्ठीदास जैन न्यायतीर्थ । प्राप्तिस्थान, श्री जैनस्वाध्यायमंदिर ट्रस्ट, सोनगढ़ (काठियावाड़) पृ० मं०
१२. ०० इस आना ।
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यह पुस्तक स्वर्गिय पं० भागचन्दजीके 'सत्तास्वरूप' नामक ग्रंथपर गुजराती भाषामें दिये गए प्रवचनोंव्याख्यान का संग्रह है। जो पं० परमेष्ठीदासजी द्वारा अनुवादित होकर पुस्तकरूपमें प्रकाशित हुआ है । कानजी स्वामी अध्यात्मरसके मर्मज्ञ मंत हैं । आपके व्याख्यान तात्विक और अध्यात्मकी मनोहर कथनीको लिये हुए होते हैं। आपके सत्प्रयत्न से इस समय सोनगढ़ अध्यात्मका एक केन्द्र बन गया है। वहां आचार्य कुन्दकुन्द के समयसारादि अध्यात्म ग्रंथोंका प्रवचन, मनन और अनुशीलन होता है । जिन महनुभावोंका उधर जाना हुआ है वे उनकी अध्यात्मकथनी पर मोहित हुए हैं। पुस्तक स्वाध्याय प्रेमियोंक लिये विशेष उपयोगी है, मुमुक्षु जनोंको मंगाकर पढ़ना चाहिये ।
६. कर्मयोग — सम्पादक हरिशंकर शर्मा, वार्षिक मूल्य चार रुपया ।
यह गीतामन्दिर आगराका पाक्षिक मुखपत्र है । पत्र में अनेक विचारपूर्गा सामाजिक, धार्मिक और राजनैतिक लेख रहते हैं। कितने ही लेख तो बड़े ही भोजस्वी, प्रभाविक एवं शिक्षाप्रद होते हैं- मानव जीवन में स्फूर्ति तथा उत्साह बढ़ाते हैं । पत्रका उद्देश्य प्रशंसनीय है और वह कर्मयोगका विकास करता हुआ संसारका एक श्रेष्ठ एत्र बनने के लिये प्रयत्नशील है । हम सहयोगीकी हृदयसे उन्नति चाहते हैं । - परमानन्द जैन, शास्त्री