________________
२१०
अनेकान्त
ब्राह्मणत्व
व्यास, विश्वामित्र आदिके (ब्राह्मणपना) कैसे सिद्ध होगा ? क्योंकि वे शुद्ध माता पितास पैदा नहीं माने गये हैं। फिर भी उन्हें ब्राह्मण माना है । अगर कहो कि अशुद्ध माता-पिता से पैदा होनेपर भी शुद्ध ब्रह्मण की क्रिया करनेसे वे ब्राह्मण कहलाते हैं तो फिर क्रियाके आधीन ही वर्ण व्यवस्था हुई। अतः मातापिताकी शुद्धि ब्राह्मणत्वका निमित्त कारण नहीं है । ब्रह्मासे पैदा होना ब्राह्मणत्व का निमित्त कारण है यह भी नहीं बनता है क्योंकि वैश्य, क्षत्रिय, शूद्र भी ब्रह्मासं पैदा होने के कारण ब्राह्मण हो जायेंगे। अगर कहो कि ब्रह्माके मुम्बसे जो पैदा हो उसे ब्राह्मण कहते हैं अन्यको नहीं, तो यह भेद भी ब्रह्मासे पैदा हुई प्रजामें नहीं बन सकता है। जैसे एक बृक्ष से पंदा हुये फल, मूल, मध्य, शाखाकं भेदसे भेदको प्राप्त नहीं होते उसी तरह ब्रह्मासे पैदा हुये सभी प्राणियों में भी ब्राह्मणादि भेद नहीं होसकते । - शंका पान की वेल के पानो में मूलमध्यदि देशांत्वन्न भेद कंठमर्याद भेद अवश्य देखा जाता हैअर्थात पानकी वेलके मूलभागसे पैदा हुये पान taraपर गलेका स्वr faगाड़ देते हैं और पानकी ताके मध्य भागोन पान खानेपर गलेका अच्छा स्वर कर देते हैं। इसी तरह ब्रह्ममुखोत्पन्न ब्राह्मण ब्रह्मा बाहु पैदा हुये क्षत्रिय, और ब्रह्माकी नाभि से पैदा हुये वैश्य, और ब्रह्मा के पैरोंस पैदा हुये शुद्र कहलाते हैं ।
[वर्ष ८
वह क्या आकार विशेष है अथवा वेदाध्ययनादिक ? कार- विशेषतो कारण नहीं हो सकता है क्योंकि वह शूद्रादिक में भी पाया जाता है । अतः श्राकार- विशेषसे शूद्र भी ब्राह्मण हो जायेंगे, जो कि अभीष्ट नहीं । वेदाध्ययन और क्रिया-विशेष भी ब्राह्मणत्वकी पहचानके सहायक करा नहीं हो सकते हैं, क्योंकि शूद्र भी अपनी जातिको छिपाकर दूसरे देशमें जाकर ब्राह्मण का रूप बनाता है और ब्राह्मण सम्बन्धी क्रिया और वेदाध्ययन करने लगता है । अतः वह शूद्र भी ब्राह्मण हो जायेगा । इस लिये नित्य ब्राह्मण जातिको प्रत्क्षयसे न दिखने से व्रत वेदाध्ययनादि ब्राह्मणमें ही कंसे सिद्ध सकते हैं ? अतः प्रत्यक्षमे ब्राह्मणत्व जाति सिद्ध नहीं हो सकती । और जो अनुमान (अर्थात् ब्राह्मणपद ब्राह्मणत्व जातिसे युक्त हैं पद होने से पटादि पदके समान) से ब्राह्मणत्व जातिको सिद्ध करने की कोशिश की है वह भी व्यर्थ है, क्योंकि ब्राह्मणत्व जाति ब्रह्मण व्यक्ति से जुदी प्रत्यक्षसे नहीं दिखती है । अतः प्रत्यक्षबाधित पक्ष होनेसे हेतु कालात्ययापदिष्ट है। दूसरे, प्रस्तुत अनुमानगत हेतु श्रनैकान्तिक दोष सहित होनेसे अपना साध्य सिद्ध नहीं कर सकता क्यों क, श्रद्वैत अश्वविषाणादिपदों में सामान्य जातिका अभाव होनेपर भी पदत्व हेतु रहता है। अगर इन अश्वविषाण श्रद्वैतादिकमें भी अश्वविषत्वादि जाति मानी जाय तो वे अश्वविषाण (घोड़े के सींग) अद्वैतादि सत्य वस्तुएँ सिद्ध होजायेंगी। किन्तु वे सत्य नहीं हैं । अतः अनुमानगत हेतु सदोष होनेसे उसके द्वारा ब्राह्मणत्वकी सिद्धि नहीं बन सकती है ।
शंका- 'ब्राह्मणेन यष्टव्यम्" अर्थात ब्राह्मणको यज्ञ करना चाहिये, इस भागम-वाक्य से ब्राह्मणजाति सिद्ध होजायेगी ?
समाधान - यह कहना भी व्यर्थ है क्योंकि पानकी daमें जघन्योत्कृष्टादिका भेद होने से उन उन प्रदेशों से पैदा हुये पानोंमें भेद बन सकता है किन्तु ब्रह्मा जघन्योत्कृष्टादि भेद न होनेसे ब्राह्मणादि भेद नहीं बन सकते हैं। अगर ब्रह्मामें जघन्योत्कृष्टादि भेद माना जाय तो जघन्य मध्यम उत्कृष्ठ तीन तरहका ब्रह्मा हो जायेगा और ऐसा माना नहीं है । ब्रह्मा के पैरोंको जघन्य माननेपर उसके पैरोंको अंडकोष के समान वंदनीयता नहीं बन सकती है । अतः ब्रह्मासे पैदा होना भी ब्राह्मणत्वका नियामक नहीं बनता है । ब्राह्मण जाति में सहायक कारण भी यदि कोई कहें तो
a
समाधान -- यह भी ठीक नहीं क्योंकि वह प्रत्यक्ष बाधित अर्थका कथन करता है। जैसे 'तृण के प्रभाग पर सो हाथियों का समूह है' यह गम प्रत्यक्ष बाधित है ।
शंका-- नित्य ब्राह्मणादि जातिको न माननेपर वर्णाश्रमकी व्यवस्था और उसके आधीन तपोदानदि