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एक ऐतिहासिक अन्तःसाम्प्रदायिक निर्णय
(ले० या. ज्योतीप्रसाद जैन एम० ए०. )
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तमान के सभी अनर्गष्टीय महान समाजकी अपेक्षा कम नहीं है । समस्त जैन समाज भारत व
विनारक विश्व-मैत्री और विश्व की अखण्ड राष्ट्रीयता एवं स्वतन्त्रता का समर्थक तथा
बंधुत्वका प्रचार कर रहे है । विभिन्न महायक है। फिर भी इसकी कोई प्रावान नहीं प्राय: इस EHIMAIT
देशीय राष्ट्रों की प्रतिद्वन्द्व नाके फल- ममाजकी उपेक्षा ही की जाती है। राष्ट्रीय संस्थाश्रो और
स्वरूप होने वाले अन्तर्राष्ट्रीय द्वन्द्वी , उनकी योजनाओंमें भी जेनीकी अवहेलना ही की जाती संहारकारी युद्धों,सबल राष्ट्रों द्वारा निर्बलोका धार्मिक शोषण है। बहुधा उस हिन्दु समाज के, जिसके साथ जैन समाज एवं राजनैतिक-परतन्त्रता आदि अप्रिय अश्रेयस्कर का मास्कृतिक एवं सामाजिक सम्पक सदेव से सर्वाधिक रहा घटनाप्रोका अन्त करने के लिये ये मानवताके प्रेमी एक हे और अब भी है, विद्वान और नेता कहलाने वाले व्यक्ति विश्वव्यापी साम्यवादी सभ्य एवं सुसंस्कृत राष्ट्र की स्थापना जैनों का अपमान करनेसे, जैन धर्म और संस्कृति के साथ के स्वप्न देख रहे है । तथापि यह युग प्रधानतया विभिन्न अन्याय करने से, इनके प्रति अपना हास्यास्पद धार्मिक देशीय राष्ट्रीयताका ही युग है। किन्तु भारतवर्ष के दुर्भाग्य विद्वेष और तुच्छ असहिष्णुता प्रकाशित करने से भी नहीं से इस देशमें वह स्वतन्त्र स्वदेशीय राष्ट्रीयता भी सुलभ चूकते। नहीं हो रही है। कांग्रेम जैसी संस्थाओं, महात्मा गांधी मरी श्रोर भारतीय मुसलमान है। वे भी अल्पसंख्यक जैसे नेताओं और देश की स्वतन्त्रताके लिये अपना जीवन ही हैं। इस समाजका भी एक अल्पसंख्यक भाग आज होम देने वाले असंख्य देशभक्तक सतत् प्रयत्न के परिणाम. कल मुसलिम लीग के नामसे प्रसिद्ध हो रहा है किन्तु स्वरूप जो एक प्रकार की भारतीय राष्ट्रीयता दीव भी पड़ता दावा करता है समस्त मसलिम समाजके प्रति हे उसमें भी भारी घुन लगे हुए है। राष्ट्रीयता के इन घुनो।
सारा घुन लग हुए. ह । राष्ट्रायता क इन घुना करनेका । इसके नेता वर्तमान राज्यसत्ताके इशारेमे में सर्वाधिक विनाशकारी घुन धार्मिक विद्वष एवं साम्पदा
अथवा अपने निजी स्वार्थ साधनाकी धुनमें भारतीय यिक द्वन्द्व हैं।
राष्ट्रीयता एवं स्वतन्त्रताके सबसे बड़े शत्रु बने हुए है। इस देश में अनेक धर्म प्रचलित हैं और उन धर्मोइनके मारे कांग्रेस जैसी संस्था का भी नाको दम पा रहा से सम्बंधित उतनी ही जातियां अथवा समाज हैं। इनमें से है. और देश की शान्ति प्रिय जनताका जन धन खतरे में कुछ बहुसंख्यक है कुछ अल्पसंख्यक । एक ओर जैन समाज पड़ा दीखना है। इस लीगकी उपेक्षा करनेकी शक्ति है जो एक अत्यन्त प्राचीन, विशुद्ध भारतीय धर्म एवं संस्कृति अथवा इच्छा न काग्रेसमें हे न सरकारमें । देशकी से सम्बद्ध है। इसकी संख्या अल्प होते हुए भी यह एक सर्वोदय उन्नति में यह सबसे बड़ी बाधा है और इसका शिक्षित, सुसंस्कृत, समद्ध एवं शान्तिप्रिय समाज है, जो मूल कारण धर्म व भिन्यजन्य विदुष एवं असहिष्णुना ही देशमें सर्वत्र फैला हुआ है। इसकी साहित्यिक एवं मास्कृतिक है। देन देशके लिये महान गौरवकी वस्तु है । श्राधुनिक समय मारे विविध धर्म न तो कभी एक हर है ओर न हो में भी सार्वजनिक हित के कार्यों में तथा गष्ट्रीय अान्दोलन सकते हैं, किन्तु उनके अनुयायियोंके बीच परस्पर सद्भाव में जैनियोंका भाग और स्वानन्य संग्राममें इनका और सौहाद्रं सदा ही बन सकता है। धर्म अात्माकी वस्तु बलिदान, अग्नी संख्या के हिसाबसे किसी भी जैनेनर है. इसका प्रश्न व्यक्तिगत बनाया जा सकता है। और प्रत्येक