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अनेकान्त
[वर्ष ८
जीको एक अङ्ग में लकवा हो गया वे भी वहां ठहर से मुक्त रहकर अपना धर्मसाधन कर सकता है। रहे हैं और उनमें स्नान कर रहे हैं। पूछनेसे मालूम भोजन ताजा और स्वच्छ मिलता है। मैनेजर बा० हुआ कि उन्हें कुछ आराम है। हम लोगोंने भी कई कन्हैयालालजी मिलनसार सज्जन व्यक्ति हैं। इन्हींने दिन स्नान किया और प्रत्यक्ष फल यह मिला कि हमें धमशाला आदिकी सब व्यवस्थामे परिचय थकान नहीं रहता था-शगरम फुरता आजाती थी। कराया। श्वेताम्बरों के अधिकार में जो मन्दिर हे वह राजगृह के उपाध्याय-पण्ड
पहले दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनोंका था। अब वह कुण्डॉपर जब हमन वहाँक सैकड़ों उपाध्यायों पारस्परिक समझते के द्वारा उनके अधिकारमें चला और पण्डोंका परिचय प्राप्त किया तो हमें ब्राह्मण- गया है । चार जगह दर्शन हैं। देखने योग्य है। कुलोत्पन्न इन्द्रभूति और उसके विद्वान पाँचसौ शिष्यों वा० छोटेलालजीक साथ १३ दिनकी स्मृति हो आई और उस पौराणिक घटनामें कई बातोंपर विचार-विमर्श करने के लिये 40 विश्वासको दृढ़ता प्राप्त हुई जिसमें बतलाया गया है नोटेलाली रईस कलकत्ता ता०५ माचको राजगृह कि वैदिक महाविद्वान गौतम इन्दभूत अपने पाँचमो गये थे और वे ता० १८ तक माथ रहे। आप शिष्यों के साथ भगवान महावारके उपदेशस प्रभावित काफी ममयसे अस्वस्थ चले रहे हैं-इलाज का होकर जनधर्ममें दीक्षित होगया था और फिर वही काफी का चके हैं, लेकिन कोई स्थायी आराम नहीं उनका प्रधान गणधर हुआ था । श्राज भी वहाँ
हुआ। यद्यपि मेरी आपमे दो-तीन वार पहले भेंट हो सैकड़ों ब्राह्मण उपाध्याय नामसे व्यवहत होते हैं।
चुकी थी; परन्तु न तो उन भेटासे आपका परिचय परन्तु आज.वे नाममात्रक उपाध्याय हैं और यह देख
मिलपाया था और न अन्य प्रकार से मिला था। परन्तु कर तो बड़ा दुःख हुआ कि उन्होंने कुण्डोंपर या
अबकीवार उनके निकट सम्पर्क में रह कर उनके अन्यत्र यात्रियोंसे दा-दो, चार-चार पैस माँगना ही
व्यक्तित्व, कर्मण्यता, प्रभाव और विचारकताका अपनी वृत्ति-आजीविका बना रखी है । इससे उन
आश्चर्यजनक परिचय मिला। बाबू साहबको मैं एक का बहुत ही नैतिक पतन जान पड़ा है। यहाँके उपा
मफल व्यापारी और रईसके अतिरिक्त कुछ नहीं ध्यायोंको चाहिए कि वे अपने पूर्वजोंकी कृतियों और .
जानता था, पर मैंने उन्हें व्यक्तित्वशानी, चिन्ताशील कीतिको ध्यानमें लायें और अपने को नैतिक पतनसे
और कर्मण्य पहले पाया-पीछे व्यापारी और रईस बचायें।
आप अपनी तारीफसे बहुत दूर रहते हैं और चुपचाप श्वेताम्बर जैनधर्मशाला और मन्दिर- काम करना पसन्द करते हैं। आप जिस उत्तरदायित्व ___ यहां श्वेताम्बरोंकी ओरस एक विशाल धर्मशाला को लेते हैं उसे पूर्णतया निभाते हैं। आपको इससे बनी हुई है, जिसमें दिगम्बर धर्मशालाकी अपेक्षा बड़ी घृणा है जो अपने उत्तरदायित्वको पूरा नहीं यात्रियोंको अधिक आगम है। स्वच्छता और सफाई करते। आपके हृदय में जैन संस्कृति के प्रचारकी बड़ी प्रायः अच्छी है। पाखानोंकी व्यवस्था अच्छी है- तीव्र लगन है। आप आधुनिक ढंगसे उसका अधिकायंत्रद्वारा मल-मूत्रको बहा दिया जाता है, इससे बदबू धिक प्रचार करने के लिये त्सुक हैं। जिन बड़े बड़े या गन्दगी नहीं होती। यात्रियों के लिये भोजनके व्यक्तियोंसे. विद्वानोंमे और शासकोंसे अच्छे-अच्छों वास्ते कच्चो और पक्की रसोईका एक धाबा खोल रखा की मित्रता नहीं हो पाती उन सबके साथ आपकी है, जिसमें पाँच वक्त तकका भोजन फ्री है और शेष मित्रता-दोस्ताना और परिचय जान कर मैं बहुत समयके लिये यात्री आठ आने प्रति बेला शुल्क देकर आश्चर्यान्वित हआ । सेठ पद्मराजजी रानीवाले भोजन कर सकता है और आटे, दाल, लकड़ी की चिता और अर्जुनलाल जी सेठी के सम्बन्धकी कई ऐसी बातें