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भनेकान्त
[वर्ष -
उम दिन राजगृह में वारुणी मेला था, जो पूछनेपर बुलाना पड़ता है या भुक्तभोगी बन कर तब तक पड़ा मालूम हुआ कि बारह वर्ष बाद भरा करता है और रहना पड़ता है जब तक वे स्वयमेव अच्छे न होजायें दो-तीन दिन रहता है। अतएव विहारशरीफसे गाड़ी या वीमारीकी हालत में ही घर चले न जायें । परिमें कुछ अधिक भीड़ रही। राजगृह पहुँचनेसे कई णाम यह होता है कि घर पहुँचते पहुँचते कितने ही मील पूर्वसे विपुलाचल सिद्धक्षेत्र के दर्शन हाने लगते यात्री वहीं या बीच में हो मर जाते हैं। यह हैं। हमारे डिब्बे में गुजराती दिगम्बर जैन बन्धु भी बात समाचारपत्रोंसे भी प्रकट है जिसका खबरें जैनथे, हम सबन दृरसे ही विपुलाचल मिद्धक्षेत्रके दर्शन मित्रादिमें प्रकाशित होती रहती हैं। हमने १५-२० किये और नतमस्तक वन्दना की। स्टेशनपर पहुँचते दिनों में ही कई दजेन या त्रयों को राजगृहमें मलेरिया ही दिगम्बर जैन धर्मशालाका जमादार मिल गया से पीड़ित पड़े हुए और कई दिन तक कगहते हुए और वह हमें धमशाला लिवा लेगया। ४-५ घंटे तक देखा है। हिबरूगढ़के एक सेठ सा० अपने २१ तो, पहलेसे सूचना दी जानेपर भी, उचित स्थानकी आदमियों महित कर ब ८ दिन तक अस्वस्थ पड़े रहे। कोई व्यवस्था न हो सकी, बादमें क्षेत्रके मुनीम गम- अन्तमें अस्वस्थ हालत में ही उन्हें मोटरलारी कर के लालजीने हमारे ठहरनेकी व्यवस्था श्री कालूरामजी जाना पड़ा। जबलपुरके ८ यात्री ७-८ दिन तक बुरी मदी गिरीडी वालोंकी कोठी में कर दी। वहाँ ५दिन हालतमें वीमार पड़े रहे। अच्छे न होते देख उन्हें ठहरे । पीछे कोठीक आदमीस मालूम हुआ कि उसके मुनीमजीद्वार। घर भिजवाया गया। दुःख हे कि इन पास श्रीकालरामजीक भाईगोंका गिरीडीस प्रानका मेंसे एक आदमीकी रास्ते में (सतनाके पास) मृत्यु भी पत्र पाया है और वे कोठी में ठहरेंगे । अतएव हमें होगई ! हमारी समझमें नहीं आता कि तीर्थक्षेत्र छठे दिन, जिस दिन वे आने वाले थे, सुबह ही उस कमेटीक जिम्मेदार व्यक्ति इन मौतोंका मूल्य क्यों खाली कर देना पड़ा और दूमरे स्थानोंम चला जाना नहीं आँक रहे ? और क्यों नहीं इसके लिये कोई पड़ा। बाद में मालूम हुआ कि उक्त काठामें कोई नहीं समुचित प्रयत्न किया जाता है ? हमारा तीर्थक्षेत्र आया और यह सव मात्र उस आदमीकी चालाकी थी। कमेटी और समाजके दानी सज्जनोंसे नम्र अनुरोध जो कुछ हो।
है कि वे कोठोकी ओरसे वहाँ एक अच्छे औषधालय फिर हम बा. सखीचन्दजी कलकत्तावालोंकी की व्यवस्था यथा शीघ्र करें। अथवा बड़नगर जैसे कोठीमें ठहर गये। राजगृहमें मच्छरोंकी बहुतायत स्थानोंसे दवाईयों को मंगवाकर वीमारों के लिये देने है जो प्रायः य त्रियांको बड़ा कष्ट पहुँचाते हैं और की उचित व्यवस्था करें। वहाँ एक योग्य वैद्य और अक्मर जिससे मलेरिया हो जाता है। मच्छर होने एक कम्मोटरकी तो शीघ्र ही व्यवस्था होजानी का प्रधान कारण यह जान पड़ाहे कि धर्मशाला चाहिए। यदि जदे तक यह व्यवस्था नहीं होती तो के आस-पास गंदगी बहुत रहती है और जिसकी तब तक तीर्थक्षेत्र कमेटीको सर्वसाधारण पर यह सफाईकी ओर कोई खास ध्यान नहीं है। धर्मशाला स्पष्टतया सभी पत्रों में प्रकट कर देना चाहिये कि के पिछले भागमें पाखानेका महीनों तक पानी भरा शिखरजीका पानी अभी तक ठीक नहीं हुआ है और रहता है जो नियमसे मच्छरों को पैदा करता है और इसलिये लोग वन्दना स्थगित रखें या अपने साथ
आसानीसे मलेरिया आजाता है। यह देख कर तो दवाई आदिका पूरा इन्तजाम मरके वन्दनाथे अथवा बहुत दुःख हुआ कि वीमारों के लिये उनके उपचारादि नीमियाघाटसे आवें* | इस स्पष्ट घोषणासे सबसे का प्रायः कोई साधन नहीं है। शिखरजीसे लौटे हुए बड़ा लाभ यह होगा कि जो वीमार पड़ कर वापिस कितने ही यात्री राजगृह आकर कई दिन तक वीमार १४ फरवरी सन् १९४६, के नैनमित्रमें प्रकाशित पड़े रहते हैं। या तो उन्हें बस्तोसे डाक्टर या वैद्यको सूचना अधूरी और अस्पष्ट है।