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किरण ४-५]
वीर संदेश
महान् तत्वोका निचोड़ और आत्माके गूढ रहस्योका सम्पूर्ण ६ धर्म किसी व्यक्ति या जाति-विशेष की वस्तु नहीं, शान भरा पड़ा है।
वह तो मानव मात्रके अधिकारकी चीज है । उसे ब्राह्मण, ___सांसारिक झंझटोको पार करते हुए वीर प्रभुने अपने क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र और चाण्डालादि सभी क्रियाशील जीवनको कर्मठ और कर्मवीर बनाया था । जीवन मार्गमें जीवन धारण करके उच्चासन प्राप्त कर सकते हैं। श्रायी हुई अनेक महान् आपत्तियोंका दृढ़ता पूर्वक सामना ७ घणा पापसे करो न कि पापीसे । पापीमे प्रेमपूर्वक करके उन्होंने अहिंसा धर्मकी छाप अखिल मानव समाज व्यवहार करके उसे उसकी भूल समझाओ और अपने पर अंकित कर दी थी। वे जबतक जीवित रहे तबतक सत्प्रयत्न द्वारा उससे पाप छुड़ाकर उसे सन्मार्गपर संसारके लिए ही जिये और जब गये तो संसारका कल्याण लगाश्रो। करते हो गये । इस प्रकार अपने समस्त कर्मजंजालोको नष्ट ८. किसीके अस्तित्वको मत मिटायो । संसारमें शांति कर उन्होंने ७२ वर्षकी श्रायमें अपने जन्म-प्रान्तके पावापर पूर्वक जियो और दूसरोको भी अपने समान जीने दो। नगरमें ही कार्तिकी अमावस्याके उषा:काल में मोक्ष-लक्ष्मी ६. प्रत्येक जीवकी पीडाको स्वयंकी पीड़ा समझो, का वरगा किया था। इसी हेतु जनताने भगवानकी पवित्र प्रत्येक जीवके दुःखको अपना दुःख अनुभव करो तथा स्मृतिको अक्षुण्ण बनाये रखने के लिए तभीसे दीपावली पर्व दूमरोके सुख में ही अपना सुख देखो तभी तुम संमारके मनाना प्रारम्भ किया है।
समक्ष समद्धि, सुख और कल्याणका श्रादर्श उपस्थित कर अद्भन विचार-कान्तिके स्रष्टा जीवनके सच्चे साधक सकोगे। पतितोद्धारक स्वनामधन्य भगवान् वीरने संसारके कल्याणार्थ
१०, सभी प्राणी जीने की इच्छा रखते हैं। जो सन्देश दिया था वह संक्षेपमें इस प्रकार है:
अत: प्रत्येककी प्रवृत्ति ऐसी होनी चाहिये जिससे दूसरे १. संसारका प्रत्येक प्रागी, जो अज्ञान, प्रशांति और जीवोको पीडा न पहुंचे और वे भी मुग्व-शांति भीषण दुःखकी ज्वालासे दग्ध होरहा हो, मेरे उपदेशसे लाभ से रहें । तुम्हें उनको मारने अथवा कष्ट पहँचानेका अधिकार प्राप्त कर सकता है। अज्ञान-चक्रमें फंसा हा प्रत्येक जीव- नहीं है। वह चाहे तिर्थच हो या मनुष्य, आर्य हो या म्लेच्छ ब्राह्मण ११ श्रोछे, बनावटी, असत्य तथा दंभयुक्त वचनोको हो या शूद्र तथा पुरुष हो या स्त्री- मेरे पास श्राकर अथवा त्याग कर मीठे और मदुल सद्वचन बोलो। मेरे दिखाए हुए मार्गपर चलकर अपनी आत्मपिपासा १२. कषाय भावो-क्रोध, मान, माया, लोभादिका शान्त कर सकता है।
अभाव ही अहिंसा है और उनका भाव हिसा है अर्थात् २. अपनी दृष्टि में सबको समान समझो-सम्यकदृष्टि कषाय और प्रमाद भावोंके कारण मन, वचन और कायसे बनो तथा अपने हृदयमें नम्रता, विनय, और दयाको स्थान आत्माके विवेकादि गुणोंका जो घात होता हे वह हिसा हे। दो। उदार, साहसी, बुद्धिमान एवं सत्यपरायण बनकर इसलिए अन्य जीवोंकी भाति अपनी आत्माकी भी हिंसा मत अपने गुणोंका सुन्दर उपयोग करो।
करो। ३. साँसारिक जीवनका सचा लाभ-प्रेमपूर्वक परस्पर १५ प्रत्येक प्रात्माके समीप सच्चे, ईमानदार और सदभाव, मंगलकामना, सहानुभूति और सत्यका पालन विश्वसनीय बननेका यल करो तथा जीवमात्रके प्रति कोमल करना है।
हृदय रखो। ४ धर्म पतितोके लिए ही होता है, इस हेतु पतितसे १४ सत्य-अहिंसाके पथपर चलकर-मानवमें मानवता पतित व्यक्ति धर्मकी शरण लेकर अात्मविकास, स्वकल्याण को जगाकर-मानव जातिकी सभी समस्याएं हल हो सकती कर सकता है । अतः किसीको भी धर्म सेवनसे मत रोको। है।
५. तुम दूसरोंके साथ वैसाही व्यवहार करो, जैसा तुग १५ देशादिक पर आपत्ति प्राने अथवा धर्मसंकट दूसरोका व्यवहार अपने साथ पंसद करते हो।
उपस्थित होने पर सम्यकदृष्टि गृहस्थको उसे दूर करनेके लिए