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किरण ४-५]
राजगृहकी यात्रा
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इसके मिवाय सम्यग्ज्ञान (प्रमाण) का लक्षण भी होनी चाहिये । इम लिये बहुत संभव है कि पट्रावली अकलंकदेवके लघीयत्रयके निम्न लक्षणको मामने में उल्लिम्बित अमृतचन्द्रका समय विक्रम संवत ६६२ रखकर बनाया गया मालूम होता है। यथा- (ई. मन ६०५) प्रायः ठीक हो । वि नोंको इस पर व्यवमायात्मकं ज्ञानमात्मार्थप्राहकं मतम् ।
विशेष विचार कर अन्तिम निणय करनेका प्रयत्न
करना चाहिये। -लघीय. ३ ६०
धीरसेवामंदिर, सरसावा,ता.१०-५-४६ मम्यग्ज्ञानं पुनः म्वार्थ-व्यवमायात्मकं विदुः। -वार्थमार १-१८
३. जिसके ठीक होने की घोषणा मुनि जिनविजय जी श्रादिने
भी अनेक ताडपत्रीय प्रतियोके आधार पर की है। और अतः अमृतचन्द्राचार्य के ममयको पूर्वावधि अक
इसलिये पानसे कोई २० वर्ष पहले मुख्तार श्री जुगल . लंकके समय विक्रम तथा ईसाकी ७ वीं शताब्दी'
किशोर जाने अपने स्वामी समन्तभद्र' इतिहास (पृ०१२५) नन्दिसूत्रकी चूणिमें श्रीजिनदासगणी महत्तरने अकलंक- में अकलंकचरितके निम्नपद्यके श्राधारपर, जिसमें संवत् देवके सिद्धिविनश्चयग्रन्यका बड़े गौरवके साथ उल्लेख ७०. में अकलंकका चौद्धोंके साथ महान्बाद होने का किया है, पर यह चणि शक सं० ५६८ अर्थात् वि. उल्लेग्व है, अकलंक का समय विक्रमकी ७ वीं शताब्दी सं० ७३३ ( ई० सन् ६७६ ) में जैसा कि उमके अन्त में निर्धारित किया था वह भलेप्रकार पुष्ट होता है:दिये हुए "शकराजः पंचसु वर्षशतेषु व्यनिक्रान्तेषु अष्टन- विक्रमार्क - शकाब्दीय - शतमात - प्रमाजुषि । वानेषु नन्द्यध्ययनचणि: समामा" इस शक्यसे जाना जाता कालेऽकलंकयतिनों बौद्धर्वादो महानभूत ॥
राजगृहकी यात्रा
तारीख २८ मार्च सन १६४६. वृहस्पतवारके सामाजिक धर्ग-वार्ता भी आरा तक होती आई । ब्राझ महत्त में प्रातः साढ़े पांच बजे मुख्तार श्री पं. इसमे बड़ा प्रानन्द रहा । लखनऊ म्टेशनपर जगलकिशोरजी और मैं गजगृह के लिये रवाना वयोवृद्ध बा० अजितप्रमादजी एडवोकेट और बा. हुए और सहारनपुरमे ७-२० वाली पंजाब एक्सप्रेस ज्योतिप्रसादजी एम. ए. हम लोगों के मानेकी खबर में सवार हुए। दैववश उम दिन तीमरे दर्जे के सब होनेसे मिलनेके लिये आये। यहाँ गाड़ी काफी देर डिब्बे खूब भरे हुए थे और इस लिये लुक्मर तक तक ठहरती है और इम लिये आप लोगोंके माथ बड़े इन्टर में आये। वहांसे तीसरे दर्जे के कई और डिब्बे प्रानन्दसे गाड़ी छूटने तक नातचीत होती रही। लग जानेसे तीसरे दर्जेके सफर में कोई तकलीफ नहीं ता० २६ को वख्त्यारपुर जंकशनपर १० बजे पहुँच हुई और न विशेष रश हुआ। मौकेकी बात है कि कर और वहांसे मवा ग्यारह बजे दिन में गजगृहकी धामपुरसे सुहद्वर प्रो० खुशालचन्द्रजी एम. ए. गादीमें बैठकर करीब पौने तीन बजे दिन में ही राजसाहित्याचार्य और भाई बा० चेतनलालजी भी मिल गृह सानन्द मकुशल पहुँच गये। राजगृह जानेवालों गये, जो क्रमशः श्रारा और डालमियानगर के लिये के लिये वख्यारपुर जंकशनपर गाड़ी बदलना होती जारहे थे। प्रो०खुशालचन्द्रजीके साथ साहित्यिक और है और छोटी लाइनकी गाड़ी में सवार होना होता है।