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किरण ४-५
राजगृहकी यात्रा
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जाते हैं और जिन संक्लेश परिणामों को सिद्धक्षेत्र माना जाता है, इसे भी हम लोगोंने गौरस देखा। जैसे पवित्र स्थानोंसे लेजाते हैं उन परिणामों को लेकर पुराने मन्दिरों के अवशेष भी पड़े हुए हैं। विपुलाचल जानेका उन्हें अवमर नहीं आयेगा और न सिद्धक्षेत्रके कुछ चौड़ा है और वैभा गरि चौड़ा तो कम है पर प्रति अपनी भावनामें कमी होगी या अन्यथा परि- लम्बा अधिक है। सबसे पुरानी एक चौबीमी मी णाम होंगे। आशा है. इस ओर अवश्य ध्यान इमी पहाड़ पर बनी हुई है जो प्राय: खंडहरके रूपमें दिया जावेगा।
स्थित है और पुरातत्त्वविभागके संरक्षण में है । इतिहासमें राजगृहका स्थान
अन्य पहाड़ोंके प्राचीन मन्दिर और खंडहर भी उसी मुख्तार सा० का अरसेसे यह विचार चल रहा के अधिकार में कहे जाते हैं। इसी वैभारगिरिक उत्तर था कि राजगृह चला जाय और वहां कुछ दिन ठहरा में सप्तपर्णी दो गुफाएँ हैं जिनमें ऋषि लोग रहते जाग तथा वहांकी स्थि त, स्थानों, भग्नावशेषों और बतलाये जाते हैं। गुफाएँ लम्बो दूर तक चली गई इतिहाम तथा पुरातत्व सम्बन्धी तथ्योंका अवलोकन हैं। वास्तवमें ये गुफाएँ सन्तोंके रहने के लिये बड़े किया जाय आदि । इमीमम लोग राजगह गये। कामकी चीज हैं। ज्ञान और ध्यानकी साधना इनमें राजगृहका इतिहासमें महत्वपूर्ण स्थान है। मम्राट की जा सकती है, परन्तु आजकल इनमें चमगीदड़ांका विम्बमारके, जो जैनपरंपराके दिगम्बर और श्वेताम्बर वास है और उसके कारण इतनी बदबू है कि खड़ा तथा बौद्ध माहित्यमें राजा श्रेणिकके नामसे अनुश्रु न नहीं हुआ जाता। हैं और मगवसाम्राज्य के अधीश्वर एवं भगवान महा- भगवान महावीरका सैकड़ोंवार यहां राजगृह में वीरकी धर्म-सभाक प्रधान श्रोता माने गये है, समवशरण पाया है और विपुलगिरि तथा वैभागिरि मगधसाम्राज्यकी राजधानी इसी राजग में थी। यहां पर ठहरा है। और वहींस धर्मोपदेशकी गङ्गा बहाई उनका किला अब भी पुरातत्त्व विभागके संरक्षण में है है। महात्मा बुद्ध भी अपने संघ सहित यहाँ राजगृह और जिसकी खुदाई होने वाला है । एक पुराना किला में अनेकवार आये हैं और उनके उपदेश हुर हैं। और है जो कृष्णके समकालान जरासन्धका कहा राजा श्रेणिकके अलावा कई वौद्ध और हिन्दू सम्राटों जाता है। वैभार पर्वतक नीचे उधर तलहटीमें पर्वत की भी राजगृह में राजधाना रही है। इस तरह राजकी शिला काट कर एक आम्थान बना है और उसके गृह जैन, बौद्ध और हिन्दू तीनों संस्कृतियों के सङ्गम आगे एक लंबा चौड़ा मैदान है, ये दोनों स्थान गजा एवं ममन्वयका पवित्र और प्राचीन ऐतिहासिक तीर्थ श्रेणिकके खजाने और बैठ के नामसे प्रसिद्ध हैं। स्थान है जो अपने अंचलमें अतीतके विपुल वैभव तीसरे चौथे पहाडके मध्यवर्ती मैदान में एक बहत और गौरवको छिगये हप है और वर्तमान में उसकी विशाल प्राचीन कुआ भूगर्भसे निकाला गया है और महत्ताको प्रकट कर रहा है। यहाँक लगभग २६ जिस मिट्टीसे पूर भी दिया गया है। इसके ऊपर टोन कुंडों ने राजगृहकी महत्ताको और बढ़ा दिया है । दूर का छतरी लगादी गई है। यह भी पुरातत्व विभागके दरस यात्री और चमंगरोगादिके रोगी इनमें स्नान संरक्षणमें है। इसके आस पाम कई पुराने कुए और करने के लिये रोजाना हजारों की तादाद में आते रहते वेदिकाएं भी खुदाई में निकले हैं। कहा जाता है कि हैं। सूर्यकुण्ड. ब्रह्मकुण्ड और सप्तधाराओंका जल रानी चेलना प्रतिदिन नये वस्त्रालंकारोंको पहिन कर हमेशा गर्म रहता है और बारह महीना चालू रहते पुराने वस्त्रालंकारोंको इस कुएमें डाला करती थीं। हैं। इनमें स्नान करनेसे वस्तुनः थकान, शारारिक दूसरे और तीसरे पहाड़के मध्यमें गृद्धकूट पर्वत है, क्लान्ति और चर्मरोग दूर होते हुए देखे गये हैं। जो द्वितीय पहाड़का ही अंश है भौर जहाँ महात्मा लकवासे ग्रस्त एक रोगीका लकवा दो तीन महीना इन बुद्धकी बैठकें बनी हुई हैं और जो बौद्धोंका तीर्थस्थान में स्नान करनेसे दूर होगया। कलकत्ताके सेठ प्रेमसुख्न