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किरण ४-५]
राजगृहकी यात्रा
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आपने बतलाई जो जैन इतिहामकी दृष्टिसे संकलनीय जमीनमें सर्वत्र S.P. Jainके नामसे चिन्ह लगे हुए हैं, है। आपके एकहरे दुर्बल शगीरको देख कर महमा जिससे आपकी जमीनका पार्थक्य मालूम होजाता है।
आपका व्यक्तित्व और चिन्ताशीलता मालूम नहीं और भी कुछ लोगोंने नवाबसे छोटे छोटे हिस्से खरोद होती, ज्यों ज्यों आपके मम्पर्क में पाया जाये त्यों त्यों किये हुए हैं। राजगृहमें खाद्य सामग्री तेज तो मिलती वे मालूम होते जाते हैं। वस्तुतः ममाजको उनका है। किन्तु बेइमाना बहुत चलता है । गेहुंओंको कम परिचय मिला है। यदि वे सचमच में प्रकट रूपमें अलगसे खरीद कर पिस ने पर भी उसमें चौकर बहत समाजके सामने आते और अपने नामको अप्रकट न मिला हुआ रहता था । आटा हमें तो कभी अच्छा रहते तो वे सबसे अधिक प्रसिद्ध और यशस्वी बनते। मिलकर नहीं दिया। बा० छोटेलालजीने तो उसे अपनी भावना यही है कि वे शीघ्र स्वस्थ हों और उनका छोड़ ही दिया था। क्षेत्रके मुनीम और आदमियोंसे संकल्पित वीरशासनसंघका कार्य यथाशीघ्र प्रारम्भ हो। हमें यद्यपि अच्छी मदद मिली, लेकिन दूसरे यात्रियों
के लिये ननका हमें प्रमाद जान पड़ा है। यदि वे गजगृहके कुछ शेष स्थान
जिम कार्यके लिये नियुक्त हैं उसे आत्मीयताके साथ वर्मी बौद्धोंका भी यहाँ एक विशाल मन्दिर बना करें तो यात्रियोंको उनसे पूरी मदद और महानुभूति हुआ है । आज कल एक वर्मी पुङ्गी महाराज उममें मिल सकती है। आशा है वे अपने कर्त्तव्यको समझ मोजद हैं और उन्हींको देखरेख में यह मन्दिर है। निष्प्रमाद होकर अपने उत्तरदायित्वको पूरा करेंगे। जापानियोंकी ओर से भी बौद्धोंका एक मन्दिर बन रहा था, किन्तु जापानमे लड़ाई छिड़ जाने के कारण आरा और बनारसउसे रोक दिया गया था और अब तक रुका पड़ा है। राजगृहमें २० दिन रह कर ता० १८ अप्रेलको मुसलमानोंने भी राजगृहमें अपना तीर्थ बना रखा है। वहाँ से आरा आये । वहाँ जैन सिद्धान्तभवनके विपुलाचलमे निकले हुए दो कुण्डोंपर उनका अधि. अध्यक्ष पं० नेमीचन्द्रजी ज्योतिपाचाय के मेहमान रहे। कार है। एक मस्जिद भी बनी हुई है। मुस्लिम यात्रियों स्टेशनपर आपने प्रिय पं. गुलाबचन्द्र जी जैन,
हरने के लिये भी वहीं स्थान बना हआ है और मैनेजर जैन वाला विश्रामको हमें लेने के लिये भेज कई मुस्लिम वासिदाके रूपमें यहाँ रहते हुए देखे जाते दिया था। श्रागमें स्व. बा. देवकुमारजी रईस द्वारा हैं । कुछ मुस्लिम दुकानदार भी यहाँ रहा करते हैं। स्थापित जैन-सिद्धान्त-भवन और श्रीमती विदुषी सिखों के भा मन्दिर और पुस्तकालय आदि यहाँ हैं। पण्डिता चन्दाबाईजी द्वाग संस्थापित जैनवालाबुंडों के पास उनका एक विस्तृत चबूतरा भी है। विश्राम तथा श्री १००८ बाहुबलिस्वामीकी विशाल ब्रह्मकुंड के पास एक कुंड ऐसा बतलाया गया जो खड्गामन मूर्ति वस्तुतः जैन भारतकी श्रादर्श वस्तुएँ हर तीसरे व पड़ने वाले लौंडके महीने में ही चालू हैं। पारा आनेवालोंको जेनमन्दिरों के अलावा इन्हें रहता है और फिर बन्द होजाता है। परन्तु उमका अवश्य ही देखना चाहिये । भवन और विश्राम दोनों सम्बन्ध मनुष्य कृत कलासे जान पड़ा है । राजगृह ही समाजकी अच्छी विभूति हैं। यहाँ स्व० श्रीहरिप्रसाद की जमींदारी प्रायः मुस्लिम नवाबके पास है, जिसमें जी जैन रईसकी ओरस कालेज. लायब्रेरी आदि कई से रुपयामें प्रायः चार आने भर (एक चौथाई ) संस्थाएं चल रही हैं । यहाँ भी प्रो० खुशालचंदजीसे दो जमीदारी सेठ साह शान्तिप्रसादजी डालमियानगर दिन खूब बातचीत हुई। आरासे चलकर बनारस आये ने नवाबसे खरीद ली है। यह जानकर खुशी हुई कि और अपने चिरपरिचित स्याद्वादमहाविद्यालयमें ठहरे जमीदारीके इस हिस्सेको आपने दिगम्बर जैन सिद्ध संयोगसे विद्यालयके सुयोग्य मंत्री सौजन्यमूर्ति बा० क्षेत्र राजगृहके लिये ही खरीदा है। उनके हिस्सेकी सुमतिलालजीस भी भेंट हो गई। आपके मंत्रित्वकाल