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अनेकान्त
[वर्ष ८
अनुश्रुतिके आधारपर जैनाचार्योंने सुरक्षित रक्खा उसे कोष, जिनसेनने आदिपुराण व पाभ्युदय प्रन्थ उन्होंने प्रथमानुयोगका नाम दिया।
रचे । वीं शताब्दी में आचार्य गुणभद्रने उत्तरपुराण, जैसाकि ऊपर निर्देश किया जा चुका है, भगवान जिनसेन काष्ठासंघीने हरिवंशपुराण, महाकवि पुष्पदंत महावीर द्वारा प्रतिपादित प्रथमानुयोगके विषयको ने अपभ्रंशमहापुराण, णायकुमारचरित, जसहरचरिउ गौतमा द गणधरोंने पाँच सहस्र पद प्रमाण रचनाबद्ध
मादिरचनायें की। किया था, किन्तु उससमय वह रचना लिपिवद्ध नहीं प्रथमानुयोगके उपर्युक्त प्रसिद्ध प्राचीन ग्रन्थों के हुई थी, लगभग उनके पाँचसौ वर्ष पर्यन्त प्रथमानुयो- अतिरिक सैंकड़ों अन्य पुराण, चरित्र, कथाप्रन्थ, गका विषय गुरुशिष्य परम्परासे 'नामावली निवद्ध गद्य, पद्य, काव्य-चम्पू रासा भादिके रूपमें, प्राकृत, गाथाओं' तथा 'कथासूत्रों' के रूप में मोखिक द्वारस संस्कृत अपभ्रंश. कन्नड़ी, हिन्दी, गजर ही प्रवाहित होता रहा । और ईस्वी सनके प्रारम्भकाल- भाषाओं में रचे गये । तामिल तथा तेलुगु भाषाभों में में विच्छिन्न होजानेके भयसे तथा लिपिका विशेष भी ईस्वी सन्के प्रारम्भकालसे ही प्रथमानयोगके प्रचार होजानेके कारण अन्य धर्म-प्रन्थोंके साथ प्रसिद्ध एवं विशाल काम्यप्रन्थ मितते हैं। साथ वह भी लिपिबद्ध किया जाने लगा।
वास्तव में वर्तमान जैनवासमयमें अन्य साहित्य वीरनिर्वाण संवत् ५३० अर्थात् ईस्वी सन ३ में की अपेक्षा, प्रथमानुयोग सम्बन्धी साहित्य सर्वाधिक भाचार्य विमलसूरिने उपयुक्त नामावलानिबद्ध है और यद्यपि इस अनुयोगका प्रधान उद्देश्य नीत्यागाथानों तथा कथासूत्रोंके आधारपर प्राकृत 'पउम- त्मक तथा धर्मकार्यों में अभिरुचि एवं पापकार्योंसे चरियकी रचना की। सरो३रीशताब्दीके प्रसिद्ध विद्वान भीरुताकी प्रवृत्तियोंका पोषण करना ही प्राचार्य स्वामी समन्तभद्रने अपने ग्रन्थों में, तीर्थंकरा- इस साहित्यका ऐतिहासिक महत्व कुछ कम नहीं है। दिके रूपमें अनेक पुराणपुरुषोंका निर्देश किया है प्राचीन भारतीय अनुश्र तिकी जैन, हिन्दू, बौद्धनामक ५ वीं-६ ठी शताब्दीमें श्वेताम्बर-सूत्र ग्रन्थ लिपिबद्ध त्रिविध धारामेंसे यह जैनधाराका प्ररिचायक है। हुए। इनमें प्राचीन तथा महावीर कालीन अनेक अनु. जहां इसके स्वाध्यायसे धर्मप्रेमियोंको धामिक कार्यों में भुत कथानक सुरक्षित हैं । ७ वीं शताब्दी में रविषेणा- प्रोत्साहन मिलता है, जहां जनसाधारणको रुचिकर चायने संस्कृत पद्मपरित्र, जटासिंहनन्दिने वारांग- कथाप्रसंगोंके मिस सच्चारित्रका उपदेश मिलता चरित्र, महाकवि धनन्जयने प्रसिद्ध द्विसंधान काव्य वहाँ विद्वानों और इतिहासकारोंको भारतवर्षके की रचनायें की।
प्राचीनकाल संबंधी इतिहास निर्माणार्थ यथेष्ट प्रमा८वी शताब्दीमें प्राचार्य हरिषेण प्रसिद्ध कथा- णिक सामग्री भी मिल जाती है।
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