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* ॐ महम् *
स्तत्त्व-सचातक
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विश्वतत्त्व-प्रकाशक
वार्षिक मूल्य ४) -dar VIIT
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एक करणका मूल्य /-)' DainmAAAAMuna
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JA नीतिविरोधष्यसीलोकव्यवहारवर्तकःसम्यक् ।
परमागमस्य पीज भुवनैकगुरुर्जयत्यनेकान्तः।
वर्षे ८ किरण ३
सम्पादक-जुगलकिशोर मुख्तार । वीरमेवान्दिर ( समन्तभद्राश्रम ) सरमावा जिला महारनपुर )
चैत्रशुक्ल, वीरनिर्वाण संवत् २४७२. विक्रम संवत २००३
मार्च १६४६
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पापभार-वहनकी मर्यादा पावनोदयते प्रभापरिकरः श्रीभास्करो भासयंस्तावद्धारयतीह पङ्कजवनं निद्राऽतिभारश्रमम् । यावत्यञ्चरणबयस्य भगवन् !न स्यात्प्रसादोदयस्तावबोध-निकाय एष वहति प्रायेण पापं महत् ॥
-शान्तिभक्ती, श्रीपूज्यपादः 'जिम प्रकार पजवन-कमलोंक समूह --निद्रा अत्यन्त भारी श्रमको- अविकामके श्रनिगाद क्लेश को-उसी वक्त तक वहन करता है जब तक कि उद्योतन एवं विकास करता हुआ प्रभापुञ्ज श्रीसुर्यदेव उदय को प्राप्त नहीं होता है, उसी प्रकार हे भगवन - श्रीशान्ति जिनेन्द्र ! यह संमारी जीवोंका समूह प्रायः उमी समय तक गुरुतर पाभारको वहन करता है-भारी पापोका बोझा ढोता है-जब तक कि आपके चरणयुगलका प्रसाद उदयको प्राप्त नहीं होता है-प्रसन्नतापूर्वक श्रापके पदोका सम्यक् अाराधन अथवा आपकी । बाकिरणोंका भलेप्रकार सेवन उससे नहीं बनता है । क्योंकि आप निष्पापात्मा होकर पापाऽन्धकारके विनाशक हैं, श्रापकी चरण-शरणमें यथाविधि प्राप्त होने वाला प्राणिवर्ग सहजमें ही अपने संपूर्ण पापसे छुटकारा पानेमें समर्थ होजाता है।