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किरण ३]
दानि अधक पहुँचाई है। उन्होंने सदस्बा ऐसे रोगियोंके प्राण छीन लिये तो यदि प्रकृतिके भरोसे छोड़ दिये जाते तो अवश्य निरोग होजाते जिन्हें हम औपाच समझते हैं ये वास्तवमें है और उनकी प्रत्येक मात्रा विष रोगीको शक्तिका डास होता जाता है।
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Marathi दर्दनाक दशा और प्राकृतिक चिकित्सा
'Like cares Like' अर्थात् 'विपस्य विपमपधम्' विधिको 'होमियोपैथी' अनुकूल प्रभावकी श्रौषधि चिकित्सा कहते हैं। इसमें एलोपैथी अपेक्षा बहुत कम अवगुण है, क्योंकि इसमें दवा विकारके अनुकूल और नाम मात्रके लिए होती है, जिससे रोग उमड़कर निकल तो जाता है परन्तु फिर भी श्रौषधिका कुछ अंश शरीरमें रह ही जाता है । अतः सर्वथा निर्दोष नहीं कही जा सकती
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प्राकृतिक चिकित्सक इनसे भी एक कदम आगे बढ़ा हुआ है। उसका कहना है कि मैं तो रोगी न चिकित्सा करता हूँ न लक्षणकी बल्कि सारे शरीरको क्योंकि विकार आजानेसे सारा शरीर दूषित होता है। दीपयुक्त अवस्था एक अंग या कई अंगों प्रकट दो सकती है, पर सारे शरीरको स्वच्छ और परिमार्जित करना आवश्यक है ।' श्रत: सर्वोत्तम चिकित्सा प्राकृतिक चिकित्सा है। जिसमें गुण संभावना ही नहीं रह जाती। मनी-भांति समझ लो स्वास्थ्य दवाग्यानां और शीशियों में नहीं है, अस्पताल के बन्द कमरोंमें नहीं है- दवा में नहीं है स्वास्थ्य प्रकृतिक साम्राज्य में जंगल में, बाग में सुन्दर फली में दूध मे है कि विशाल प्राङ्गण में पशु और पनि जगत सदैव स्वस्थ्य विचरण करता है । अत: निश्चित है स्वास्थ्यकी तचादी करना दोनी कि सेवन करो विस्तार से प्रस्तुत प्रकरण छोड़कर प्रकृत प्रकरण प्रारम्भ किया जाता है
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प्रस्तुत करना यह है कि बीमारियोंका मुख्य कारण भोजन की अव्यवस्था है । प्राणीका स्वाभाविक भजन फल है, उससे उतरकर अन्न, दूध, मक्खन, छाछ, फल, रोटी, दाल, तरकारियों और मेवात में शक्ति दायक भोग्रदार्थ है। शेष आवाय पदार्थ है। इनके नियमित सेवन स्वस्थ और नियमित सेवन से अस्वस्थ अवस्था होती है ।
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बच्चोंकी प्राकृतिक चिकित्माः
के सभी रोगों में यदि वह खाना खाता हो तो उसे बंद करके केवल दूध और फल देने चाइये सर्व प्रथम । को कब्ज या दस्तोकी शिकायत होती है। इसमें यदि बच्चा माँका दूध पीता हो तो मांफी ममानोका व्यवहार छोडकर फल, साग-सी और मादी टोही निर्वा रोटियोपर करना चाहिये । परन्तु यदि बच्चा अन्न खाता हो तो दो तीन दिन उसे फल देना चाहिये। मीनाबूतरे अनार, अंगूर, पीता श्रादि फल दिये जा सकते हैं। दस्त श्रानेवर रसदार फल ही काममें लाना चाहिये, लोकन कब्ज केला कटहल आदि छोड़कर सभी फल खाये जा सकते हैं।
ज्वर में केवल फलोंकारी देना चाहिये, जरूरत पड़नेवर ताजे दूध के साथ संतरे का रस मिलाकर देते हैं। अवस्था लिहाज टी या बड़ी चमकी पट्टी सवेरे शाम दोनों समय श्रधे घण्टे पेटवर बाघना चाहिये। एनीमा भी लगा लेना चाहिये।
दूध पकने में भी उक्त उपचार ही काम लाना चाहिये। एक दो बार एनीमासे पेट भी साफ कर लेवे । दुखनेपर की ही भोजन व्यवस्था रखते हुए खोपर गर्म ठंढे पानीकी बैंक पाँच मिनट के लिये देना चाहिये। सेफनेकी तरकीब यह है एक पतन गर्म सहता हुआ बनी और दूसरे बर्तन में ताला ठंडा पानी भर दे दी छोटी नौलिया या कार्य दोनों बर्तन
डाल देवें फिर गर्म पानीको मलिया या फाया निकालकर उसे निचोड़कर रखे। इसके बाद इसी प्रकार ठंडे पानीकी ये एक बाद दूसरा रस्ता जाय गर्म शुरू और मकरे मिट्टाकी ठंडी ठंडे पट्टी भी खोकी बन्द करके उनपर दे सकते हैं। पुगने रोपांच मिनट का पेडू नदान भी देना चा
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सर्दी लगने और बांस नंबर यदि बच्चा बड़ा हो तो सुबह शाम मिट्टीकी पट्टी वाघ घण्टे रवं और इसके बाद ही एनीमा लगा देवे। बच्चेको दिनम चार बार सनी तीन २ घण्टे बाद चार छः बूंद नींबू और शहद मिलाकर देवें । खाने में मुनक्के या ताजे फल देना चाहिये स्वाँस खाने उपरोध० मिनट लगातार गर्म
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