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अनेकान्त
(वर्ष ८
टूटे पानीको मेक दिन में दो बार देवे । पेटकी सफाईपर कपड़े की पट्टी अाध घण्टे बाँधकर सब खोल देनी चाहिये । मदेव ध्यान रखना चाहिये । यदि खाँसी तेज हो तो एक मोटे काकी पट्टी नाजे पानी में भिगोकर निचोड लेवे और वस्तुत: बच्चोंकी तन्दुरुस्ती माताश्रोके हाथ में है उन्हें उसीको गलेमें लपेटकर उमी भीगी पट्टीके ऊपर एक ऊनी स्वतः और बच्चोको होशियारीसे रखना चाहिये ।
आत्मविश्वास ही सफलताका मूल है
(लेग्बक--श्री अखिलानन्द रूपराम शास्त्री)
प्रामा हमारी प्रकृतिका प्राध्यात्मिक तथा दिव्य भाग विघ्नबाधाको दूर कर देगी। वह अपने कार्यकी प्रगति और है। जिन लोगोंको अपनी प्रान्तरिक दिव्यशक्तिका ज्ञान वृद्धि के लिए कोई भी कोर कसर उठा नहीं रखना और नहीं और जिनके पास इस जगानेके लिए बल नहीं उनके अपनी विचारशक्तिको इधर उधर भी गौण बातोंमें नष्ट अन्दर यह गुप्त रहता है। इस अन्तरात्माके साथ वार्ता नहीं करता। वह अपने कार्यस प्रेम करता है उसी प्रसन्न जाप करनेपर तुम्हारे सब वधन टूट जावेंगे क्योंकि तुम्हें होता है और तत्संबंधी प्रत्येक बातमें अपना तन, मन लगा मालूम हो जायगा कि तुम स्वामा हो और संसारकी कोई देता है। चूंकि उसका निश्चय हद होता है, सफलता भी शक्ति तुम्हारे सामने 'नहीं' कहनेका साहस नहीं उसकी भार खिंची चली मारी। रखती। कृतकार्य बननेका साहम करो, एक सत्तावान यदि मफलता देवीकी प्राप्ति अभीष्ट है तो अपन व्यकिकी भांति विचार और कार्य करने का माहम करो, निजकी शक्तिका प्रयोग करो और स्मश्या रक्खो कि भगवान अपने अस्तित्वका अनुभव करो, अपने आपको 'मात्मा' उन्हींकी सहायता करते हैं जो अपनी सहायता स्वयं करना मानो, उस दिव्य शक्तिका अनुभव को अपने लिये भाप जानते है । खूब दृढ़निश्चय करी "मैं अवश्य कृतका मोचो फिर देखो कि तुम्हारी मय रुकावट, विघ्न वाधाएँ हंगा।" प्रारमनिग्रह द्वारा बलवान बनो क्योंकि प्रारमसंय. ऐसे दर होती हैं जैसे सूर्यके निकलते ही अंधकार लुप्त सही आर्थिक सफलताको वश में करने वाली मानसिक हो जाता।
शक्ति प्राप्त सकती है। सदैव वचनके पक्के रहो, इससे भारमविश्वासी व्यक्ति अपनी मनोवांछित कामनाको प्रारमनिग्रहकी शक्ति बढ़ती है। उद्योग और परिश्रमक प्राप्ति के लिए विना पूर्ण विचार किये, घबराहट और जल्दी विना कुछ भी नहीं हो सकता । तुम नररत्न नहीं बन में किसी कार्य को भारम्भ नहीं करता । वह कार्य करते सकते जब तक कि अपनी ब्रटियों को दूर न करो। निरन समय अन्यावश्यक दिखलावे और कोलाहलके द्वारा अपनी करो कि 'मैं मफलताकी मूर्ति' हू', मैं एक उन्नतिशील कार्यक्षमताको व्यर्थ नष्ट नहीं करता । वह जानता है और भारमा हूं, मेरी शक्ति प्रतिदिन, नहीं नहीं प्रतिपल बद भलीभांति अनुभव करता है कि उसकी प्रबल इच्छा प्रत्येक रही है।