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तस्ततत्व-सत्य
विश्वतस्व.प्रकाशव
वार्षिक मूल्य ४) -RAKARANAawasenaNAD
इस किरणका मूल्य II) saral
4911
नीतिविरोधचसोलोकव्यवहारवर्तकः सम्यक् । परमागमस्य बीज भुवनेकगुरुर्जयत्यनेकान्तः।
बर्ष ८
सम्पादक-जुगलकिशोर मुख्तार वीरसेवामन्दिर (समन्तभद्राश्रम) सरसावा जिला सहारनपुर बंशाख-ज्येष्ठ शुक्ल, वीरनिर्वाण संवत् २४७२, विक्रम संवत २००३
अप्रेल मई १६४६
किरण ४-५
समन्तभद्र-भारतीके कुछ नमूने
युक्त्यनुशासन [सम तभद्र-भारतीके कुछ नमूने' इस शीर्षकके नीचे अनेकान्तके प्रायः पाँचवें और छठे वर्ष में स्वामी समन्तभद्र के 'स्वयंभूस्तोत्र'का अनुवाद पाठकोंके सामने प्रस्तुत किया गया था, जो अब संशोधनादिके साथ पुस्तकाकार छप गया है-मात्र कुछ परिशिष्ट तथा : स्तावना छपनेको ब.की हैं, जिनके छपते ही अन्य के शीघ्र प्रकाशित होजानेकी हद पाशा है। आज उन्हीं महान आचार्यकी एक दूसरी अद्वितीय कृति 'युक्त्यनुशासन' को, जो कि स्व-पर-सिन्हान्तोंकी मीमांसाको लिये हुए श्री वीर भगवानका एक बड़ा ही गम्भीर स्तोत्र है, क्रमशः पाठकोंके सामने अनुवादके साथ रक्खा जाता है। यह कृति स्वामीजीकी उपलब्ध कृतियों में यद्यपि सबसे छोटी (कुल ६४ पद्यात्मक) है परन्तु बड़ी ही महत्वपूर्ण है। इसका एक एक पद बीजपदोंके रूपमें सूत्र है अथवा सूत्रवाक्यका अंग है। इसीसे श्रीजिनसेनाचार्य ने हरिवंशपुराणमें समन्तभद्रके इस प्रवचनको 'वीरस्येव वितम्भते' लिखकर वीरभगवानके बीजपदात्मक प्रवचनके तुल्य प्रकाशमान बतलाया है। इसके पदोंमें बड़ा ही अर्थ-गौरव भरा हुआ है। क्रिष्ट और दुर्गम भी यह सबसे अधिक है। शायद इसीसे आजतक इसका हिन्दी अनुवाद नहीं हो पाया। इसपर एकमात्र संस्कृतटीका श्रीविद्यानन्द-जैसे लब्धप्रतिष्ठ महान् प्राचार्यकी उपलब्ध है, जो बहुत कुछ संक्षिप्त होते हुए भी वातायन (मरोखे) की तरह ग्रन्थके प्रमेयको प्रदर्शित करती है। इसी टीकाका प्रधान आश्रय और सहारा पाकर मैं मूल ग्रन्थको कुछ विशेषरूपमें समझने और उसका यथाशक्रि अनुवाद करने में प्रवृत्त हुआ हूँ। मेरा यह अनुवाद मूलके कितना अनुरूप और उसे संक्षेपसे अभिब्यक्र करने में