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भगवान महावीर (ले०-श्री पं० परमानन्द जैन शास्त्र)
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लिच्छवि उपवंशीय क्षत्री थे। यह वंश उस समय वैशालीको स्थिति
अत्यन्त प्रतिष्ठित समझा जाता था। यह जाति अपनी
वीरता और पराक्रमके लिये प्रसिद्ध थी इनका संगठन, विहार प्रान्तके मुजफ्फुर जिलेकी गण्डिका नदीके
रीति-रिवाज, धर्म और शासन प्रणाली सभी उत्तम थे ममीपस्थित वसाढ ही प्राचीन वैशाली है। यह राजा विशाल
इनका शरीर अत्यन्त कमनीय, मनोहर और श्रोत एवं की राजधानी थी, इसीसे इसका नाम वैशाली हुश्रा जान
तेज सम्पन्न था। यह विभिन्न रंगोंके वस्त्रोंका उपयोग पड़ता है । यह नगरी कोल्लाग आदि समीपस्थ प्रान्तों करते थे। और वसुकुण्ड तथा वाणियग्राम श्रादि उपशास्त्रा नगरोंसे
वजीगणतंत्रमें उस समय अनेक जातियां सम्मिलित विभूषित थी। प्राचीन वैशालीका वैभव अपूर्व था, वह थी और जिनकी संख्या संभवतः पाठ या नौ थी। इनमें वह धनवान्यादिसे समृद्ध और उत्तन महलों एवं मका.
परस्पर बड़ा ही सौहार्द और वात्सल्य था यह एक नातोंसे भलंकृत थी। ईपाको छठवीं शताब्दीसे पूर्व
दूसरेके सुख दुखमें बराबर काम पाते थे । वैशालीके वैशाली तीन भागों में विभक्त थी और जिन्हें वसा
शासक राजा चेटकके राज्यकाल में वैशाली अपनी प्रतिष्ठा (वैशाजी) कुण्डग्राम और तणियाग्राम कहते थे। इनमें
__एवं वैभवकी पराकाष्ठाको पहुंच चुकी थी। काशी कौशल उस समय ब्राह्मण क्षत्री और वैश्य जातिके लोग ही और विदेह (वैशाली) आदि अनेक देशोंकी राज्य व्यवस्था अधिकांशत: निवास करते थे। यह वजीगण तन्त्रकी उस समय गणतन्त्र (प्रजातन्त्र) के प्राधीन थी। इस राजधानी थी, और वजीदेशx की शामक जातिका नाम व्यवस्थास वहांकी प्रना अत्यन्त सुखी और समृद्ध थी। लिच्छवि था। यद्यपि लिच्छवि वंशके उदय अभ्युदयका जनतामें आदर सत्कार धर्म कर्म और श्राचार-विचार कोई प्रामाणिक इतिवृत्त उपलब्ध नहीं है, फिर भी यह आदिकी सभी वृतियां समादरणीय थी। राजा चेटक' * वैशालीके नामके वारेमें पालीग्रन्याम लिखा है कि की पत्नीका नाम सुभद्रा था, इसकी बात पुत्रियां थीं, दीवारोको तीन वार हटाकर उन्हें विशाल करना पड़ा १ मुनि कल्याण विजयजीने श्रमण भगवान महावीर के पृ. ५ था, इसीलिये इसका नाम वैशाली पड़ा।
में चेटकको हैहयवंश' का गजा लिखा हे | किन्तु -पुरातत्व निबंधावली पृ० १४
दिगम्बरीय हरिवंशपुराण के अनुमा वि देवदेशक क्षत्रियोको । देखो, मुजाफरपुर जिलेका गजटियर सन् १९०७ और
'इक्ष्वाकुवंशी' सूचित किया है। जिससे राजा चेटक भा मन् १६०२ का रायलएशियाटिक सोसाइटीका जनरल ।
इक्ष्वाकवंशी मालूम होते हैं। देखा हरि० २, ४ पृ. २२ ५ बजविदे (वज्जाभिदे) देशे विशाली नगरी नृपः। २ भद्रभावा मुभद्राऽस्य बभूव वनितोत्तमा।
--इरिपेण कथाकोष ५५, १६५ पृ०८६ अस्या हितरा सप्त बभूबू रूपराजिताः। वजनादेशमें आजकल के चम्पारन और मुजफ्फरपुर के तन्मध्ये प्रथमा प्रोक्ता परमा प्रियकारिणी। निले, दरभंगाका अधिकांश भाग, तथा छपरा जिलेके दुिनीया सुप्रभा जेया तृतीया च प्रभावती। मिर्जापुर, परमा, सोनपुरके थाने एवं कुछ और भाग प्रियावती चतुर्थी स्यात् सुज्येष्टा पंचमी पगा। सम्मिलित थे।
पठी चलना दिव्या सप्तमी चन्दना मना ।। --देखो, ग• कृत पुरातत्व नि० पृ. १२ का फुटनोट
-दरिषेण कथा-कोष, ५५, १६७ मे १६६