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देहली धर्मपुरेका दिगम्बर जैन-मन्दिर
( लेखक-पा० पन्नालाल जैन, अग्रवाल )
संवत १८५७ में श्रीमान लाला हरसुवगयजी वेदीके चारों ओर द वागेपर दर्शनीय बहमूल्य (कुछ लेखकों के मतानुसार मोहनलालजी) ने धर्मपुरा चित्रकारी है । यह चित्रकारी बड़ी खोज क मथ (देहली) में नये मन्दिरजीकी बुनियाद रक्खी, जो शास्त्रोक्त विधिम बनवाई गई है। जैसे वेदोके पीछ मात वर्ष में पांच लाग्बकी लागतम बनकर तय्यार ३ चित्र पावापुरी, श्रनस्कन्ध यंत्र भौर मुक्ता गरक हुा ।' कुछ लेखकों का खयाल है कि वह आठ अङ्कित हैं। इसके उ. ६ भक्तामर काव्य यंत्रहिन, लाग्ब रुपयेकी लागतका है। यह लागत उस समय इसम ऊपर ह भाव, वेदी के द्वारा पांच चित्र ५ की है जब कि राज चार पाने और मजदर दो आने भक्तामर काव्य, १५ भाव, वेदीक बाई ओर ५ चित्र, रोज लेते थे। इस मन्दिरकी प्रतिष्ठा मिति वैशाख १५ भक्तामर काव्य, १५ भाव, मामने ३ चित्र, शुक्ला ३ संवत १८६४ (मन १८०७) में हुई । ६ भक्तामर काव्य, ६ भाव इस तरह चा अर १६ मन्दिरकी मूलनायक वेदी जयपुरके स्वच्छ मकगन चित्र, ४८ भक्तामर काव्य यंत्रहित, ४८ भाव हैं को संगमरमरकी बनी है और उसमें सच बहुमूल्य दशनीय है। कुछ भावांक नाम य है--मनत्कुमर पापागाकी पञ्चीकारीका काम और बलबूटोका कटाव चक्रीकी परीक्षाके लिये देवों का श्राना, भरत बाहुबल ऐसा बारीक और अनु ग्म है कि ताजमहल के कामको के तीन युद्व, शुभचन्द्रका शिलाको स्वर्णमय बनाना, भी लजाना है। जो यात्री विदेशोंसे भारतभ्रमण के ममन्तभद्रका स्वयंभम्तोत्रके उच्चारगाम पिण्डी के लियेयहां आते हैं वे इस वेदीको देव विना देहलीस फटनेसे चन्द्रप्रभकी प्रतिमाका प्रकट होना, गजकुमार नहीं जाते । जिस कमलपर श्रीआदिनाथ भगवानकी मुनिको अग्निका उपसर्ग, सुदर्शन मटके शील के प्रतिमा विराजमान है उस कमलकी लागत दश हजार प्रभावम शलीका मिहामन हाना, गवण का केलाश रुपये तथा वेदीकी लागत सवा लाख रुपये बताई को उठाना, मकमाल जीका वेगग्य और नपमगमहन, जाती है। कमलके नीचे चारों दिशाओं में जो मिहीं सीताजीका अग्निकुग में प्रवेश, भद्रबाहु स्वामास के जोड़े बने हुए हैं। उनकी कारीगरी अपूर्व और चन्द्रगमका स्वप्न का फल पन्द्रना, नाम स्वामी और आश्चयजनक है। यह प्रतिमा संवन १६६४ की है। कृष्णकी बलपरीक्षा, गरिमा जन त्यागकी महिमा, अकयह दुःवकी बात है कि मूलनायक प्रतिमा इम ममय लंकदेवका बौद्ध चायन वाद आदि। बीच की वेदी में मन्दिरजीमें मौजूद नहीं है । कहा जाता है कि वह मबसे ऊपर इन्द्र बाना मृदङ्ग प्रादि लिए हुए है इम खण्डिन होगई और बम्बई के समुद्रन प्रवाहित कर नगह चारों ओर मन्दिरका नकशा चित्रकलामें है। दी गई है।
पहले इम मन्दिर में एक यह वेदी थी फिर एक १ श्रासारेसनादीद सन् १८४७ पृष्ठ ४७-४८ रहनुमाये पृथफ वेदी उप प्रतिविम्ब ममूहक, विराजमान करने
देहली सन् १८७४ पृष्ठ १६६, लिस्ट ग्राफ, महामाहन के वास्ते बनवाई गई । जिनकी रक्षा सन १८५७ के एन्ड हिन्दु मौनमन्स Vol 1 पृ० १३२ ।
बलवे के समय में अपने जीजानम जैनियोन की थी। २ देहली दी इम्पीरियल सिटी पृ० ३५, देहली डायरेक्टरी उसके बहत वप पछि दो स्वर्गीय आत्माओंकी स्मृति फोर सन् १९१५ पृ. १०३ पंजाब दिस्टिकरगजे टयर में उनके प्रदान किए रुपयेम दोनों दालाना में दियाँ सन् १९१२ पृ. ७८, गजेटियर श्राफ देहली डिस्ट्रिक्ट बनाई गई। इन वेदियों में नीलम. मग्गजकी मतिय सन् १८८३-८४ पृ० ७८-७६, दिल्लादिग्दर्शन पृ०६, तथा पाषाण की प्राचीन वन १११२ की प्रनमाएँ हैं।
देहली इनटूडेज़ पृ० ४३, वन्डरफुल देहली पृ० ४३। एकछत्र स्फटिकका बना हुआ है। ३ अामारसनादीद पृ० ४७-४८ ।
वाहरके एक दालानमं दनिक शास्त्रमभा होनी है,