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साहित्य-परिचय और समालोचन
१ जेन-सिद्धान्त-भास्कर-भाग १२ किरण २ संपादक मामायिकगट--प्राचाय मितगति, सम्पादक प्रो. हीरालाल एम० ए०, प्रो. ए. एन उपाध्ये एम. ए. और गुजराती अनुवादक श्री रावजी नेमचन्द शहा वकील, री० लिट, बा. कामताप्रमाद एम० श्रार. एम., पं. के. सोलापुर, प्रकाशक श्री वीरग्रन्थमाला, सांगली : भुजबली शास्त्री, और पं. नेमीचन्द्र जैन पाहिल्यान । प्रस्तुत पुस्तक प्राचार्य कुन्धुमागरजीकी पवित्र प्रकाशक जैन सिद्धान्तभवन पारा, मूल्य 11) रुपया। स्मृतिम सम्पादकद्वारा अर्पित की गई है। प्राचार्य अमित
प्रस्तुत किरण जैन सिद्धान्तभवन श्राराकी पागमायिक गतिक दोनों बडे और छोटे सामायिक पाठों के अलावा पत्रिकाका दृमरा हिम्मा है। इसक दो विभाग हैं हिन्दी पण्डित महाचन्द्रकृत हिन्दी सामायिक पाठ भी दिया गया और अंग्रेजी। दोनों ही विभागों में १५-१६ विषयों पर है और इन सबका गुजराती में अनुवाद है। पुस्तक पामायिक अच्छे एवं ग्बोजपूर्ण निबन्ध लिखे गए हैं और उनमें प्रेमियों के लिये भरछी उपयोगी है। पुस्तकपर कोई मूल्य विद्वान लेखकाने विचारकी कितनी ही सामग्री प्रसत की नहीं दिया हुआ है इसम मालूम होता है कि स्वाध्याय है। केवलोजिन कवलाहार नहीं लेने पाठवीं शताब्दी में प्रेमियोंक हिनार्थ निःशुल्क प्रकट की गई है। भारतके प्रधान गत्य, तस्वार्थसूत्रकी परम्परा, प्रक्रियावनार
३ वीर तपम्वी--सम्पादक मुनि छोगालाल म. यादि म्य त्ति उपायक संस्कार और श्रथ व्यंजन श्रामार्थी. प्रकाशक मेघराज बबरमल जी धाकर बड़ीसादड़ी पर्याय निरूपणा श्रादि सभी लेग्य पठनीय है। जैनाचार्य
(मेवाड), मूल्य अात्मसुधार । ऋषिपुनका ममय श्रीर उनका ज्योतिषनान सम्बन्धी
हममें स्थानकवामी मुनि घब्बालाल जी म. लख पं. नेमीचन्द्रजीन बड़े परिश्रम और ग्वाजक माथ
का जीवन-परिचय दिया गया और यह बताया गया है लिसा और उसमें विक्रमकी छठी शता.दीक वराहमिहर कि किस प्रकार उन्होंने अपने श्रारको प्रामांमतिक मार्ग थादि दसरे विद्वानोंक ज्योतिष सम्बन्धीग्रन्थीक तुलनात्मक पर जगाया है। पुस्तक पठनीय है। वापयों द्वारा उसपर पर्याप्त प्रकाश दाता है।
अनेकान्तमें समालोचनार्थ पुस्तक भेजने वालोंके लिये प्रन्यमाला बिभागका 'ध्यानम्तव' भी अच्छा ग्रंथ
जानकर खुशी होगी कि अब कागज़ श्रादिकी दिक्कत है इसके कता भास्करनन्दी हैं जो तत्वार्थ वृत्तक का है।
दूर होजाने में अनेक न्तमें पहले की तरह माहिग्यासमालोचना यह किरण अपनी पिछली किरणसे बहुत सुन्दर है,
की जाया करेगी। अत: समालोचनार्थ पुस्तक भने पाई सफाई भी अच्छा है। विद्वानों, पुस्तकाध्यक्षों,
वाले सम्पादक 'अनेक' के पनेपर ही पुस्तकं भेजते रहें। मिर्च कालगें, वाचनालयोंक लिये ग्रंथ संग्रहाय है।
और इनकी दो दो प्रतियां पानी चाहिए । कई ग्रन्थ समालोचनार्थ प्रत हुए हैं जिनमें षट खण्डागमके भाग ७ भादि कुछ ग्रन्थों की समालोचना
--दरबारीलाल जैन, कोठिया अगली किरया मेंदी आवेगी।-परमानन्द जैन, शास्त्री
(न्यायाचार्य)