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जैनसंस्कृति-संशोधन-मण्डलपर अभिप्राय
एक वर्ष के लगभग हा. बनारस में 'जैन संस्कृति संशोधनका तात्पर्य ही यही होना चाहिये कि जैन संस्कृति संशोधन-मण्डल' के नाम से एक नई संस्था स्थापित की प्रामाणिकता , माग विशुद्ध रूप में प्रस्तुत किया जाय । हुई है। और अपने उद्देश्य तथा कार्यप्रवातक प्रदर्शनार्थ स्तुत: मी भागा और कार्यप्रवृत्तिको हम बड़ी जरूरत एक पत्रिका का प्रकाशन भी इसके द्वारा शुरू किया गया है। यदि प्रारम्ममें से व्यक्ति कम भी होंगे तो बाद एक है। पत्रिकाक नं. ३, ४, ५ र ६ ये चार अङ्क मुहदर मंधक रूपमे व अादरणीय स्थान पर दिग्बाई दंगे। प्रो० दलमुख मालपाणयाने हमें अभिप्रायार्थ भेजे हैं । इन श्रना हम उपयुक्त मंशोधन-मण्डलका स्थापनाका अंकोंमे मंशोधन-मण्डलको श्रा-श्यकता, उमके उद्देश्य अभिनन्दन और स्वागत करते हैं | मायमें इसके प्रवर्नको और कार्यप्रवृतिका योजना मालूम दानाती है।
में यह भी कहना चाहते है कि मंशाधन-मण्डल द्वारा जो इममें मन्देह नहीं कि जैनधर्म, जैनमादित्य, जैन इति- माहित्य मंशोधित और मम्पादन किया जाय उमक मंशाहास, जैनदर्शन और जैन कला आदि का विश्वको परिचय धको और मम्माद काम दीनी परम्पराओके नियक्ष विद्वानीको कराना आज बड़ा आवश्यक है । प्रायः प्रत्येक ममदार मामालन करना चाहिये । वर्तमान में जो मादकमामान व्यक्ति श्राज एक-दमरकी संस्कृनमे परिचित होना चाहता बनी है उसमें एक हैं। परम्पराक बिहानीको मामालन किया है । अत: यह ममयोचिन और अत्यन्त श्रावश्यक है कि गया है --- दुमरी परम्पराकेएक भी विद्वानका न होना चटकने जैन संस्कृति को उसके संशोधित-श्रावक्रनम्बम हा लोकको यग्य है । यह बात नहीं है कि मग पर गर्म असाम्प्र. परिचय कगया जाय और वर्तमान दोनी जेंन परमगोके दाय विद्वान नदी है-3ममें भी बनमान मपादक मध्यवर्ती छोटे-मोटे गड्ढोको पाटत हए एक अवराद्ध जैन मामति के विद्वानी जम निदान मौजूद हैं। अतएव हम परम्पगके विशुद्ध तत्वोंको प्रकाशमनाया जाय।
मंशाधन मण्डलका ध्यान हम खटकने योग्य चीजको श्रीर बनारमके इस नव-स्थापित जैनमस्कात मंशोधन- अाकर्षित करते हैं और निम्न बिद्धानको उचाखत मण्डलसे श्राशा की जाती है कि वह इस कार्य को करनेम सम्पादक-माम्मतिमं मामालन करने के लिये अपनी गाय समर्थ होगा। जैमा कि उनके निम्न उद्देश्योम प्रतीत होता है- प्रस्तुत करन हैं:
(१) जैन तत्वज्ञान, इतिहास और मांस्कृतिक मादित्य १ डा. ए. ए. आध्ये पाच • दी, कोल्हाप का अन्वेषण।
२ पं. जुगलकिशोर जी महनार, मरमावा । (२) जैन मम्प्रदायांक तिहास तथा मौलिक एकताके ३ डा. इंगलाल जी एम • U, -Jल० बी०, नागपुर। माधारोका अन्वेषण ।
/४ ५० कैलाशचन्द्र जी शास्त्री, बनारम। (३) संशोधनात्मक मादित्य का प्रकाशन ।
५५. महेन्द्र कुमार जी न्यायाचार्य, बनारम । (४) उक्त अन्वेषणको प्रगतिशील बनाने के लिये प्रयत्न
श्राशा हे इन विद्वानोको उक्त मम्यादक ममितिम इन उद्देश्यों में जो भावना निहित हे उमम दा मन मम्मिलित करके मगदुल दरांशताका परिचय देगा और नहीं हो सकत-प्राय: प्रत्येक निष्पक्ष समझदार व्यक्ति इम उमका गौरव एवं शक्ति बढायगा । हम मण्डल की हर तरह भावनाका हृदयमे अनुमोदन और अभिनन्दन करेगा और प्रगति चाहते है । पत्रिका उक्त ग्रंकीको दबकर हमें यदि इन उद्देश्यों के अनुसार ही कार्यप्रवृत्ति होती है तो बड़ी प्रसन्नता हई। जिन कतिपय व्यक्तियोंको इन उद्दश्याम मन्देह होगा वीर सेवा मन्दिर, सरमाया। दरबागलाल जैन, कोटिया उनका वह मन्देह भी नहीं रह सकेगा । जैन मंस्कृति- २७-२-१६४६ . ।
(न्यायाचार्य)