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अनेकान्त
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श्रीनिवासन उसका पुनरुद्धार किया था।
गजनवीने (ई. सन् १००१) अमेकबार भारतपर भाक्रमण पश्चात जनोंके जबरदस्त विरोधी तेलग प्रदेशमें किया । महमूदगौरीने (ई. ११७५) मी इस देशपर सवारी शुद्धावत सम्प्रदायके स्थापक वल्लभ (वल्लभाचार्य) की । इस नई सत्ताके बल पर जैन तथा हिंदू धर्मपर प्रत्यानामक ब्राह्मण हुए (१४७१-१५३१) मथुरा, राजपूताना चार होने लगे। सुलतान अलाउद्दीन महमृदशाह खिलजीने
और गुजरात प्रांतमें इस सम्प्रदायका खूब प्रचार हश्रा। (ई. १२६७-१८) गुजरात प्रान्त जीत लिया और वहांपर विशेषत: तो अनेक धनिक व्यापारी जैन इम सम्प्रदायमें जो जुल्म किये गए उन्हें वहांके लोग अभी भी याद करते चले गये । इसके अतिरिक बंगाली प्राचार्य चैतन्यने हैं। मूर्तियां स्खण्डित की गई, मंदिर तोड़े गए, उनकी (१४८२-११३३) कृष्ण भक्तिके भजन गाये। उनके जगह मस्जिद बनाई गई, ग्रन्ध जनाए गए, खजाने लूटे आध्यात्मिक उपदेशका प्रभाव समस्त भारतमें फैल गया गए, और अनेक जैन मार डाले गए !! और उसमें अनेक जैन बह गए।
मतांध मुसलमानोंने जब द्राविड राज्योंको नष्ट किया हिंदूधर्मकी विशिष्ट कलाके कारण जैन धर्मके अनेक तब दक्षिण में भी उन्होंने ऐस ही भयंकर अत्याचार किए। शिष्य उस धर्ममें चले गये हैं। इतना ही नहीं, मगर यह समय जैनांके लिए घोर संकटका था। शैव और अभी इसके जो शिष्य हैं उनमें भी हिंदू धर्मक अनेक वैष्णव धर्ममें चले जानेसे जैनोंकी संख्या कम तो हो ही भाचार विचार प्रवेश कर गये हैं। इसी प्रकारसे गई थी, उसमें भी इन मुसलमानोंने विनाश करना शुरू हिंदू धर्मके जिन देवी देवताओंको जैनों में किंचितमान भी कर दिया। इस सकटों से बचनेका उपाय मात्र भाग स्थान नहीं था उनमें उन देवी देवताओंका प्रवेश होगया है। जानेके सिवाय और कोई नहीं था। जैनोंने अपने ग्रंथ
वेदांतके प्रभावमे अनेक पारिभाषिक शब्द भी जैन भण्डार भोयरात्रों में भर दिए और वहांपर कुछ साधनों साहित्यमें घुस गए हैं। भावनामों और सामाजिक जीवन के अतिरिक्र कोई प्रवेश न कर सके ऐसी व्यवस्था कर दी। में भी जैन लोग हिंदू भाव स्वीकार करते जारहे हैं।
तथा अपने (जैन) मन्दिरोंको मुसलमानी राजाओंको कुछ
घाट (!) देकर मतान्धोंके प्रत्यचारोंमे बचा लिया । मुस्लिम गज्यके नीचे जैन
अनेक मुसलमान राजाओंने जैनोंका विनाश अग्नि मुसलमानोंने भारतपर अाक्रमण किया और ई. मन् तथा तलवारोंस किया, उन्हें बलात्कारसे भ्रष्ट किया, और ७१२ में सिधमें मुसलमान राज्यकी स्थापना हुई। महमूद अनेक अत्याचार किए ।
(पृ.७८ का शेषांष)
किसने बाया तथा समृद्ध किया और किस वंशके कितने अंकित पाषाण दिल्लीके जैनमंदिरोंके ही अवशेष हैं या राजाभोंने कब तथा कितने समय तक वहां राज्य किया। अन्यत्रसे लाए हुए मन्दिरोंके हैं ? उनमें उत्कीर्ण दिगम्बर तोमर वंशके राजाओंके जो नाम राजावलीमें उल्लिखित हैं जैनमूर्तियां आज भी जैन-संस्कृतिक महत्वको ख्यापित उनकी अन्य प्रमाणोंसे जांच कर यह निर्णय करना भाव करती हैं। जैनियोंके पुरातत्वकी महत्वपूर्ण विशाल मामग्री श्यक है कि उन्होंने कब और कितने समय तक विसीमें यत्र तत्र अव्यवस्थित रूपसे बिखरी हुई पड़ी है, जिसका तथा अन्यत्र शासन किया। तथा ऐतिहामिक रष्टिसे यह एकत्र संकलन होना बहुत जरूरी है। भी अन्वेषण करना भावश्यक है कि दिशीमें संवत् ११८६ में पूर्व तथा उस समय कितने जैनमन्दिर थे और वे कहां
वीरसेवान्दिर, सरसावा गए- उन्हें किसने कब नष्ट किया ! और कुतुबमीनारमें
ता.२०-१०-४५