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Regd. No. A-7*.
भनेकान्त
[वर्ष ८
सुचक है जो तोमरवंशके नामसे प्रसिद्ध हुआ। दिल्ली की नामावली देकर द्वितीय अनंगपाखका खेल १६वें को तोमरवंश द्वारा बसाये जाने में कोई मतभेद नहीं, नम्बर पर करते हैं। परन्तु इस वंशके किस राजाने और कब बसाया, इसपर पं. समीधर बाजपेयी भी तोमरवंशक अनंगपाख ऐतिहासकोंका एक मत नहीं है। प्रबुजफजल सं० ४२४ (प्रथम) को दिल्लीका मूखसंस्थापक प्रकट करते हैं जिनका में और फरिश्ता सन् १२० में दिल्लीका बसाना मानता राज्याभिषेक सन् ७१६ में हुमा था, उसने सबसे प्रथम १२ पंडित जयचन्द्र विद्यालंकार सन् १०५० में अनंग- दिल्ली में राज किया और उसके बाद उसके वंशज कन्नौजमें पाल नामक एक तोमर परदार द्वारा दिल्जीके स्थापित चले गये वहाँस उन्हें चन्द्रदेव गाठौबने भगा दिया था। होनेका क्लेख करते हैं । और प्रसिद्ध पुरात्ववेत्ता प्रोमा इसके बाद दुमग अनंगपाल दिल्ली में पाया और वहां जी भी वितीय अनंगपालको उसका बसानेवाला मानते हैं। उसने अपनी राजधानी बनाई। पुनः नूतन शहर वसाया
कनिंघम साहब सन् ७३६में अनंगपाल (प्रथम) द्वारा और उसकी सुरक्षाके लिये कोट भी बनवाया था । कुतुब दिखीके बसाये जामेका उल्लेख करते हैं और अनेक हस्त- मीनारके पास पास प्राचीन इमारतोंके जो अवशेष एवं लिखित पुस्तकों एवं ख्यातोंके आधारसे दिल्लीके तोमरवंश चिद देखे जाते हैं वे सब अनंगपाल द्वितीयकी राजधानीके
चिन्ह माने जाते हैं। इसके राज्यममयका एक शिलालेख १ यद्यपि इस वंशके नामकरण और विकास श्रादिका कोई
भी मिला है जिसमें लिखा है कि--"संवत् ११०१ अनंग. प्रामाणिक इति वृत्त उपलब्ध नहीं है । सुना जाता है कि
पाल वही।" साथ ही उक्त कुतुब मीनारके पास अनंगपाल दिल्लीके दक्षिण पश्चिममें 'तुयारवती या तोमगवती'
के मनिरके एक स्तम्भपर उसका नाम भी उस्कीय हुमा नाम का एक जिला है, उममें आज भी एक तोमरवंशी
मिना । सरदार रहता है। बहुत संभव है कि इस वंशका निकास
इससे मालूम हो उक्त तुमारवती या तोमरावतीसे हुश्रा हो; क्योंकि प्राय:
कि अनंगपाल द्वितीयने दिल्ली अनेक गोत्र, जाति एवं वंशोंके नामोंका निर्माण गांव
का पुनरुद्धार किया था और उसे सुन्दर महलों मकाऔर नगरोंके नामोसे हुआ है। और यह हो सकता है
नातों तथा धनधान्यादि समृद्ध भी बनाया था। संभवतः कि उक्त नगरीके नामपर ही तोमरवंशकी कल्पना हुई हो। इसी कारण उसके सम्बन्धमें दिल्लीके बसाए जानेको श्राइनेअकबरीमें 'तुयार' नामसे ही इसका उल्लेख है।
कल्पनाका प्रचार हुया जान पड़ता है। अनंगपाल द्वितीय और अपभ्रंशभाषाके कवि पधूने अपने ग्रन्थों में तुबर या
को दिल्लीका संस्थापक या वसानेवाला माननेपर मिसराती तंबर शब्दसे ही इस वंशका सूचन किया है। इस वंशके मसऊदीक इस कथनको गलत ठहराना पड़गा। कि साबार वंशधर श्राज भी राजपूताने और प्रारा प्रान्त में पाए जाते
मसऊदने सन् १०२७ से सन् १०३.के मध्यमें दिल्ली है। गमपूतानेमें यह 'तुमार' नामसे ही प्रसिद्ध है। इस
पर चढ़ाई की थी, उस समय वहांका राजा महीगल था, वंशमें अनेक वीर क्षत्रिय राजा हुए हैं जिन्होने इस भारत
जिसके पास उस समय भारी सैन्य थी और बहुत से हाथी से
भी थे और जिसका पुत्र गोपाल लड़ाई में मारा गया था। वसुन्धरापर या इसके कुछ प्रदेशोपर शासन किया है। भा दिल्ली के बसानेका श्रेय भी इसी वंशको प्राप्त है। इस वंश
द्वितीय अनंगपाल के राज्याभिषेकका समय कनिंघम
और के कई वीर राजाभोंने दोसौ या ढाईसो वर्ष के करीब साहबने सन् १०४१ (वि० सं० १९०८) दिया ग्वालियरपर शासन किया है और उसे धन धान्यादिसे ५ दी आर्कियोलाजिकल सर्वे श्राफ इण्डिया By जनरल खूब समृद्ध किया था। इसका विशेष परिचय नागेन्द्रनाथ कनिषम साहब पृ० १४६ । वसुकृत विश्वकोष भाग ६ में देखना चाहिये। ६ देखो, दिल्ली अथवा इन्द्रप्रस्थ पृ० ६। २ देखो, टाडराजस्थान हिन्दी पृ. २२७ अोझा. सं. ७ देखो, टाडराजस्थान पृ० २२७ तथा महामना श्रोझाजी ३ देखो इतिहास प्रवेश प्रथम भाग पृ० २२० ।
द्वारा सम्पादित राजपूतानेकाइतिहास प्रथमजिल्दपृ०२३४॥ ४ टाडराजस्थान हिन्दी पृ० २३० ।
८ टाडराजस्थान पृ० २२० ।