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किरण २]
दिल्ली और दिल्जीकी राजावली
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कई शताब्दियों बौद्ध धर्म नहीं था - उसका बहुत समय २० राजाओंके नाम दिये हैं। इसके बाद सं० १२४६ तक पहले ही भारतसे निष्कासन होचुका था। भाशा है इसमें सात चौहान वंशी राजाभोंक नाम अंकित हैं, जिनमें अन्तिम बामपेयी जी अपनी गलत धारणा को दुरुस्त कर लेंगे और दो नामोंका कोई उल्लेख मेरे देखने में न, माया । उसक पुस्तकके द्वितीय एडीशन में उस निकाल कर पुनः यथार्थरूप में बाद लिखा है कि-"सं. १२४६ वर्षे चैत्र सुदी १३ लिखनेकी कृपा करेंगे
सुलतान शहाबुदीन (तुकवंश) गनीतहिं मायाँ १४ वरिस इस मन्दिर में एक परछ। शास्त्र भंडार भी है, जिसमें राज्य कियो।" इसके अनन्तर दिल्ली की गद्दीपर बैठने वाले हस्तलिखित और मुद्रित ग्रन्थोंका अच्छा संग्रह है। इसके बादशाहोंक नाम तथा राज्य करनेका समय मय तिथिक प्रबन्धक ला० रतनलाल जी हैं जो प्रकृतित. भद्र है और उल्लेखित किया गया है । गुटके में दियेहुए प्रयः मुसलमान अपना पमय रोनाना शास्त्रों की सम्हाल एवं व्यवस्था बारशाहों नाम और समय श्रीमन् गौरीशंकर हाराचदजी लगाते हैं।
प्रोमा अजमेर द्वारा सम्पादित राजपूनिक इतिहापकी दूपरा पंचायती मन्दिर है जो मस्जिद खजाके पास प्रथम जिरूट के पृष्ठ ५३४-३६ पर प्रकाशित 'दिल के है और कुछ वर्ष पूर्व नये सिरे पुनः बना है। यह मंदिर सुलतान' नामक छठे परिशष्टमे प्रायः मिलने जुलते हैं पहले बहुत छोटे रूपमें था और भट्टारकीय मन्दिर कहलाता कहीं २ कुछ थोबा मा फर्क दृष्टिगोचर होता है । मायही था यहां भट्टारक जी भी रहते थे। इस मन्दिरमें भा एक उपके छ नाम प्रस्तुत गुटक में नहीं हैं, जिनका होना विशाल हस्तलिखित प्राचीन प्रन्योंका सग्रहहै। इसके प्रावश्यक जान पड़ता है। प्रबन्धक ला० बबूगमजी हैं जो बड़े ही मज्जन हैं और
गुटकेकी इस राजावलीको यहां ज्योंकी स्यों नीचे दिया भाग तुक विद्वानों को ग्रंथ पठन-पाठनादि को देते रहते हैं।
जाता है। परन्तु उसमें ब्रेकट वाला पाठ अपनी योगसे
रखम्वा गया। इसके सिवाय उममें जहां कहीं कुछ विशेष प्राचीन गुटका और राजावली
कहने योग्य अथवा अनुकूल प्रतिकूल जान पसरा उR नीचे इस पंचायती मन्दिरके शाख भंडार को देखते हुए फुटनोट में दे दिया गया है। मेरी दृष्टि एक पुगने गुटकेपर पड़ी जिपका नं. ६१ है अथ ढीली स्थानकी राजावनी लिख्य)ने । और जिममें फुटकर विषयों के साथ साथ ढीली स्थानकी तामरवंश संवत् ३६ भादराया। जाजू १ वाज २
नावती' लिखा हुश्रा है। यह गुटका बहुत ही जीर्ण राज ३ मीहा ४ जवाल ५ श्रादरू ६ जेहरू ७ वच्छ १२ ८ मालूम होता है परन्तु ग्रन्थों की मरम्मत कराते समय उपी पीपलु है गवलुपिहयापाल .. गालु ताल्लसपालु " माइक किसी दूपरे वंडित गुटकेका अंश इसके साथ जोड़ रावल गोपाल १२ रावल मलक्षगु १३ रावल जयपाल दिया गया है जिमम महमा उसकी अपूर्णनाका प्रतिभाम १४ रावल कम्बरू (कुर) पालु' १५ रावल अनंगपालु" नहीं होता। इस गुटके में सं. ८३६ मे सं० १५०२ तक , कनियम माहियकी श्राकियालाजिकलम अाफ़ इराद्या होने वाले राजाओं के नाम दिये हुए है। और लिखा है।
नामक पुस्तककी जिल्द प्रथम पृष्ठ २४६ मे १५-१२ कि-"सं० १५८३ वर्षे बैशाग्व सुदी ८ पानि साहि बम्वरु
नम्बर पर गोपाल' नाम गाया जाता है। मुग़लु काबुल तहिं श्राया, राज्यं करोति इदानीं।" इसमें
। इसम २ उक्त पुस्तकम १३ वे नम्बर पर 'मन क्षणाल' दिया है। स्पष्ट है कि यहांतक वंशावलि उक्त सं० १५८१ से पहले।
पहल ३ उक्त पुस्तक म १४ व २० पर 'जयाल' नाम दिया है। लिखी गई। इसके अनन्तर बाबर राज्यके ६ वर्ष दिये ।
दय । उक्त पुस्तक में १५ वें नंबर पर कुंवरपाल, यह नाम गुटके हैं और १५८८ मे १६१२ तककी वंशावनी दी गई। म कछ अशुद्धरू में लिया गया है। किन्तु बादको किमी दूसरी कलमये दो मुपवमान बादशाहों ५ उक्त पुस्तक में १६ व नम्बरपर अनंगपाल का नाम दिया का राज्यकाल और पीछे लिख दिया गया है।
है और इमका गज्यकाल १६ वर्ष ६ महीना और १८ सं० ८३६ सं० १२११ तक तोमर या तंबर वंशक दिन बतलाया है। गुटक में भी यह नाम १६ नम्बग्पर है।