________________
किरण २]
जिन वृक्षोंने ही प्रांगनको (२६) 'खर्जूरवाह' - सा नाम दिया । किस काल - प्रभंजनने तुम से उन बाल-सखों को छीन लिया ?
दिल्ली और दिल्लीकी राजावली
(३०) क्या उप वैभवके साथ-साथ हो गई प्रतिष्ठा भी विलीन ?
(३१)
या इस युगका मानव-समाज होगया आज हे हृदय-हीन ? शत-शत शङ्खों का तुमुल घोष अब नहीं सुनाई पड़ना क्यों ? शत-शत पुजारियों का समूह अब नहीं दिखाई पड़ता क्यों ?
(३२) सदियाँ हैं बीत गई
तुमको
युग की गति में ढहते बहते । इन निर्म। दुनिया वालों की क्षण-क्षण भीषण कटुता सहते !
(३३) तुमको स एक बराबर है तम रहे कहीं, आलोक कहीं ! सुख-दुख का कैसा अनुभव है, होता कुछ हर्ष-विषाद नहीं ? अश्रु दर्शकों के (३४) अ नहीं रुला सकते तुमको | पथिकों के ये परिहास -हास अब नहीं हँसा सकते तुमको !
ये
बहते
(३५) हे देवालय !
दिल्लीकी गणना भारतवर्ष के प्रधान शहरों में है, वह वर्तमान में बृटिश साम्राज्य की राजधानी है और पिछले समय में भी मुगल साम्राज्य तथा उससे पूर्व तोमर या तंवर वंशियोंके शासनकाल में राजधानी रही है। दिल्लीके नामकरण और उसके बसाने के सम्बन्ध में अभीतक मतभेद पाया जाता है। कोई कहता है कि लोहे की कीलीके ढीली होजानेके कारण उसका नाम 'ढोली' पड़ा है। दूसरा (फरिश्ता) लिखता है कि यहांकी मिट्टी नरम है उसमें कठिनाई से मेख (कील) दृढ, गढ़ सकती है, इसीसे इसका नाम 'ढोली' रक्खा गया है। कुछ भी हो, वर्तमान दिल्लीका प्राचीन नाम 'इन्द्रप्रस्थ' था और बादको दिल्ली, डिलिका, योगिनीपुर, जोहणिपुर, दिल्ली तथा देहली आदि नामोंसे उल्लेखित किया गया है। जैन साहित्य में दिल्ली, जोहणिपुर
७१
उत्तुङ्गकाय
हे गर्वोन्नत- गिरि भूतल के ! हे आये शिल्प स्वर्णिम स्व-कीर्ति ! हे दर्पण भारत - कौशल के ! (३६)
तुम जीएं.-शीर्ण ही बने रहो इतना ही गौरव क्या कम है ? तुम उस अतीत की संस्मृति हो जो अनुपम है, सर्वोत्तम है ।
दिल्लो और दिल्ली की राजावली
( लेखक -- पं० परमानन्द जैन, शास्त्री )
दिल्लीका नामकरणादिविषयक इतिहास- योगिनीपुर और दिल्ली नामों का खूब उपयोग हुआ है,
परन्तु अपभ्रंश भाषा के जैन साहित्य में केवल दिल्ली और जोइणिपुर इन दो नामोंका ही प्रयोग हुआ मिलता है।
दिल्लीको कब और किसने बसाया, यह एक प्रश्न है । देहली म्यूजियम में सं० १३८४ का एक शिलालेख है उसके निम्न वाक्य में तोमर या तंवर वंशियों द्वारा दिल्ली के निर्माण करनेका स्पष्ट उल्लेख पाया जाता है:--
देशोस्ति ढिला
हरियानाख्यो पृथिव्यां स्वर्गमं नभः । पुरी तत्र तोमरैरस्ति निर्मिता ॥
तोमर या तंबर शब्द एक प्रसिद्ध क्षत्रिय वंशका
१ देखी, राजस्थान इतिहास भाग २ पृ० ६८४ टि०, पं० ज्वालाप्रसाद मिश्रद्वारा अनुवादित ।