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किरण १]
जैन सरस्वती
उपासना है। सम्भवतया इसी कारण सरस्वतीकी प्रतिमाएँ (१) देवगढ (कामी जिला) में १२ची १३वीं शताब्दी भी बहुत अस संख्यामें उपलब्ध है।
की, बैठी हुई। इस देवीके सम्बंधमें साहित्य तो पर्याप्त है-कई एक पूजा- पल्लू (बीकानेर गज्य) में--मध्यकालीन, खड्गासन, पाठ, स्तोत्र, कल्प, विनती, प्रतिष्ठाविधि इत्यादि दोनों ही चतुभुजा, तीन हायाम--चीगा, पुस्तक, माला, चौथा सम्प्रदायोंमें मिलती है। इस के रूप प्राकृति आदिका जो अभयमुद्रामें । वर्णन उक्त साहित्यमें मिलता है उसमें भी भिन्न २ श्राचार्यो (३) महागिरि (मैसूर) की मल्लिनाथ बस्लीमें, मध्यमें थोड़ा थोड़ा मतभेद है। इसकी जो भी पांच छः मूर्तियों कालीन । अब तक उपलब्ध हुई हैं उनमेंसे कोई भी किसी भी एक (४) मिरोही राज्य के अजारी नामक स्थान में, महावीर प्राचार्य के बर्णनसे पूर्णतया नहीं मिलती।
स्वामी मन्दिरमे । निमाके श्रासन पर 'विक्रम संवत् दिगम्बर-सम्प्रदायके अनुसार इसका वाइन मयूर १२ १२६६' खदा हुआ है। और श्वेताम्बर सम्प्रदायके अनुसार हंस । कुछ प्राचार्या (५) मामानेर और जयप के बीच चन्द्रवती नामक के अनुसार यह चतुभुजा है, कुछ के अनुसार द्विभुजा । एक म्यानम १२ वी शताब्दीकी टीई, एक हायमें 'कच्छी हाथ में पुस्तक अवश्य है, दूसरा अभयज्ञान-मुद्रामें या कमल बगा' स्पष्ट है । पुष्प लिये हुए । चार हाय हानेमे, शेष एक हाथ में बोगा
(६) लग्बनऊ प्रान्तीय अद्भनालय (म्यूजियम) में-- है, दूसरेमें अक्षमाला। इसकी वीणा कच्छपके आकार की
मथुग-कंकाली टोले की खुदाई में प्राचीन पोन मंदिरके भग्नाहोती है और कच्छपी बीगा कहलाती है। एक प्राचार्य के
वशेष के समीस प्राप्त (सन् १८८६ ई० में'। अनुसार यह त्रिनेत्रा, बालेन्दु और जटामण्डिता भी होता है।
यह मति रतीले लाल पत्थरकी, आदमकद, उकडू इसके वर्ण और बसनके श्वेत होने में सब एक मत है। अब तक सरस्वती देवीकी कबल ६ प्राचीन मूर्तियों
बैटी हुई है। मूनि वंदित है। गर्दनमे ऊपरका भाग गायब हमारे जानने-सुनने में आया है, और वे इम प्रकार है
है, दाहिना हाथ भी पहूँचेक कारसे टुटा हुआ है। देवी
किमी एक दी वस्त्रसे अच्छी तरह वेरित है। दाहिना हाथ १. अरिष्टनेमिकृत श्रीदेवता-कल्पः मल्लिपण-सूरि कृत
ऊपर उठा हुअा 'अभय-ज्ञानमुद्रा' में प्रतीत होता है. बॉय भारतीकल्प; जिनप्रभाचार्यकृत वाग्देवता-स्तोत्र; पद्मनन्दि
हाथ में डोर में बंधी ताडपत्रीय पम्तक हैं। पादमूलमें एक प्राचायकृत सरस्वतीस्तोत्र इत्यादि। २ .ॐ ह्रीं मयूग्वादिन्यै नमः इति वागधिदेवता स्थापयेत्” ।
तक्त शक जानिकी पोशाक ( स्य निक ) पदने हुए तथा
दोनो हाथाम एक बन्द पात्र लिये हुए खड़ा है। पाई और
-प्रतिष्ठामारोद्धार ३ "श्वेतवणे श्वेतवस्त्रधारिणी हंसवादना श्वेतमिदासनासीना ६ B. C. Bhattacharya-Jaina Icono....चतुभुजा ।" तथा "श्वताब्ज-बीणालंकृत-वामकग graphy page 165 F. N. पुस्तक-मुद्राक्षमालालंकृत-दक्षिण करा ।"-श्रा.दि.प्रतिष्ठा० ७ Ibid. तथा-ॐ ह्रीं भगवति ब्रह्माणि चीणा-पुस्तक-पद्माक्षसूत्र- ८ Annual Report of Arch Survey of हंसवाहने श्वेतवर्ण इह षष्ठीपूजने श्रागच्छ।"श्रा. दि. प्र. Mysore 1918, Benglore 1919. p.6
"नानावृत्त-पदन्यास - वर्णालंकाररदारणी, सन्मार्गाङ्गी ६ Sita Ram's History of Sirohi Raj. सिता जैनी प्रसन्ना न: सरस्वती ।"-श्रीदेवताकल्प ने. अ. १. श्री अशोककुमार भट्टाचार्य के चित्रसंग्रह में । "अभयज्ञानमुद्राऽक्षमाला-पुस्तक-धारिणी।
११V. Smith-Jain stupas and other त्रिनेत्रा पातु मां वाणी जटा-बालेन्दु-मण्डिता ।।
Antiquities of Mathura p. 56, plate -सरस्वती (भारती) कल्प-मल्लिपणसरि XCIX. In the Lucknow Museum the ४ जिनप्रभाचार्यकृत वाग्देवता-स्तुति ।
number of the statue is 8-9/507.