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Regd. No. A-730.
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अनेकान्त
[वर्ष ८
दु:खोंमे उत्पीडित विवेकीजन उन दुःखोसे बचने तथा अपनेको शान्तिलाम कराने के लिये आपकी शरण में प्राप्त होते हैं; पोकि श्राप स्वामी समन्तभद्र के शब्दों में-"स्वदोषशान्त्या विहितात्मशान्तिः शान्तेविंधाता शरणं गतानाम्" हम वाक्य के अनुसार अशान्ति के कारणभूत अशान, गग, द्वष, मोह और काम-क्रोधादि सकल विकार-भावोंको दूर करके अपने श्रात्मामें शान्तिकी पूर्णप्रतिष्ठा किये हुए हैं और इसीसे शरणागत भव्य जनकि लिये शान्निके विधाता है।
हृदय है बना हुआ फुटबाल ! ..... विविध विचारों की ठोकर खा, होता है बे-हाल ! | कभी खूब डरता-घबराता, श्राता लख निज-काल ! कभी लुढ़कता इधर-उधर तो, लेता कभी उछाल !! | काम अधूरे लग्वकर अपने, पड़ता चिन्ता-जाल !! हृदय है बना हुआ फुटबाल ! १
हृदय है बना हुआ फुटबाल ! १० आति-भेदके गड्ढे में पड़, भूल गया सब चाल ! J इष्ट-वियोग अनिष्ट-योगकी चिन्ता उधर कराल ! मानवताकी सुन पुकार भी, कर देता है टाल !! | फिकर फिकर में मुरझाया तन, सुकड़ गई सब खाल !! हृदय है बना हुश्रा फुटबाल ! २
हृदय है बना हुआ फुटबाल ! ११ मसारीक-प्रपञ्च-जालमें फंसा हुआ हर हाल ! पर-चिन्तामें पड़कर, अपना भूल गया सब हाल ! नहीं निकलनेकी सुधि करता, ऐसा हुआ निढाल !!
मकडी जाला-सा रच-रचकर, फँसा जगत-जम्बाल !! हृदय है बना हुआ फुटबाल ! ३
हृदय हे बना हुआ फुटबाल ! १२ कभी विषय-सम्पर्क सोचकर, होता है खुशहाल ! कभी प्राप्त सुन्दर विषयों को भी लखता निज-काल !!
अपनी भूल-मोहपरिणतिसे सहता दुख विकराल !
राग-द्वेषके वशीभूत हो, होता है पामाल !! हृदय है बना हुआ फुटबाल ! ४ प्रेम-मग्न सश्चित द्रव्योंकी करता कभी सँभाल !
हृदय है बना हुआ फुटबाल ! १३ उदायीन हो कभी समझता उनको जान-बबाल !!
| हो करके 'युगवीर' भटकता फिरता क्यों बेहाल ! हृदय है बना हुआ फुटबाल ! ५
जीवन शेष रहा है कितना ? अपनी सुरत सँभाल !! कभी धनिक बननेकी इच्छा, कभी रुचिर-कंगाल ! | हृदय है बना हुआ फुटबाल ! १४ ध्यान-मग्न हो गिरि-गहरमें बसने का बस ख्याल !! | वहत किया अन्वेषण परका, लिखे भनेकों हाल ! हृदय है बना हुआ फुटवाल ! ६
| अब निजरूप सँभाल खोजकर, छोड़ सकल जंजाल !! देश-सेवकोंकी गाथा सुन, लख वीरोंकी पाल !
हृदय है बना हुआ फुटबाल ! १५ उन ही जैसा हो रहनेको, उमड़त है तत्काल !!
विपुलाचल चल वीर-ज्योति लख, शांति-प्रद सुविशाल! हृदय है बना हुआ फुटबाल ! ७
अपनो ज्योति जगा ले, उसके चरणों में रख भाल !! कभी सोचता-'सबम पहले अपने दोष निकाल ! तभी बनेगी सची सेवा, होगा देश निहाल' !!
हृदय है बना हुआ फुटबाल ! १६ हृदय हे बना हुश्रा फुटवाल ! ८
यों निज-आत्म-विकास सिद्ध कर, करले प्राप्त कमाल! कभी आपसे बातें करता, फैंस उत्प्रेक्षा-जाल । भ्रम-बाधा-चिन्तासे टकर, होजा चित्त ! निहाल !! कभी हवाई किले बनाता, शेखचिलीकी ढाल । हृदय है बना हुआ फुटबाल ! १७ हृदय है बना हुआ फुटबाल !
वीरसेवामन्दिर, ता०३-२-१९४६
'युगबीर'