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वार्षिक मूल्य ४)
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विश्व तत्त्व-प्रकाशक
वर्ष किरण २
* ॐ अर्हम् *
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नीतिविरोधयंसी लोकव्यवहारवर्तकः सम्यक् । | परमागमस्य बीजं भुवनैकगुरुर्जयत्यनेकान्तः ॥
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सम्पादक - जुगलकिशोर मुख्तार
वीरमेवामन्दिर ( समन्तभद्राश्रम ) सरसावा जिला सहारनपुर फाल्गुन, वीरनिर्वाणा संवत् २४७२, विक्रम संवत् २००२
भगवत्-शरणमें कारण
न स्नेहाच्छरणं प्रयान्ति भगवन् ! पादद्वयं ते प्रजाः हेतुस्तत्र विचित्र दुःख निश्चयः संसार-घोराणैवः । अत्यन्त - स्फुरदुग्र-रश्मि- निकर - व्याकीर्ण - भूमण्डलो
ग्रैष्मः कारयती दुपाद - सलिल च्छायाऽनुरागं रविः ॥ १ ॥
वस्तु तत्त्व-संपातक
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फी १६४६
एक किरणका मूल्य (7)
- शान्तिभक्ती, श्री पूज्यपादः
'हे भगवन् ! — श्रीशान्तिजिनेन्द्र ! - आपके प्रजाजन - उपासकगण - स्नेह से – विशुद्ध प्रेम के वश - आपके चरण-शरण में प्राप्त नहीं होते हैं, बल्कि उस शरणागति में दूसरा ही (प्रधान) कारण है, और वह है विचित्र प्रकार के दुःख- समूह से परिपूर्ण घार संसार-समुद्रं जिसमें उन्हें रहना पड़ रहा है और जिसकी घोर यातनाश्री एवं कष्ट-परम्पराको सहते सहते वे बहुत ही ऊब गये तथा बेचैन हो उठे हैं, अब उनसे और अधिक वे दुःख कष्ट महे नहीं जाते, वे उनसे भयभीत हैं और इस लिये उन सब संसार-क्लेशांसे छुटकारा पानेके हेतु ही आपकी शरण में श्रा रहे हैं। सो ठोक ही है, अपनी अत्यन्त स्फुरायमान उम्र किरणोंके समूहसे भूमण्डलको व्याप्त और संतप्त करने वाला ज्येष्ठाका सूर्य चन्द्रकिरणों (चांदनी), जल और छाया के प्रति संतप्त प्राणियोंका अनुराग कराता ही है । - श्रर्थात् जिस प्रकार प्रचण्ड-सूर्य-धामके श्रातापसे संतप्त हुए प्राणी उस श्रातापसे बचने तथा प्रविष्ट हुए श्रतापको मिटानेके लिये जल, छाया और चन्द्रकिरणोंका श्राश्रय लेते हैं, उसी प्रकार घोर संसार-समुद्र के असह्य