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वानर-महाद्वीप
(लेम्बक-प्रो० बानापपाद सिंह न, एम० ए०, एल-एल० बी०, एफ० आर० ई० एस०)
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X गवान रामचन्द्र के जीवनका सर्वोपरि महत्व परन्तु वह क्यों और कब हमा, इसका कोई उत्तर नहीं
उनके शील स्वभाव व पाचरणका अद्वितीय मिलता। होना, उनका मर्यादापुरुषोत्तम होना, राम- (३) संपार-व्यापी एक सभ्यता है जिसको "हीलियो राज्यका मादर्श उपस्थित करना तो है ही. लिथिक कल चर" कहते हैं। इसके विशेष तत्व तीन है-सूर्य
परन्तु उनके जीवनकी विशेष घटना, जिसके की रुपापना, बड़े बड़े पत्थरोंके प्रासाद व मन्दिर बनाना, लिये वे श्रार्य सभ्यता के प्रतीक चिरस्मरणीय हैं. यह थी
तथा मनुष्यकी बलि देना । यह सभ्यता संसारमें कहां उत्पन्न कि उन्होंने पहले पहल आर्य-मभ्यताका प्रकाश वानर- हु
हुई और किम कारणसे कब और किन रास्तोंसे संसारमें महादीपमें पंगा दिया। उनके समयमे पूर्व भार्य ऋषिगया
फैली, इसका कोई संकेत इतिहा-ज्ञ प्राप्त नहीं कर सके। बनवाममें घोर तपस्या करते हुए दण्डक वन तक पहुंच (४)संसारकी सर्वप्रथम सभ्यता सुमेरियन सभ्यता कही चुके थे । उपके भागेके प्रदेशोंमें कोई कोई विशिष्ट व्यक्ति जाती है, जिसके चिन्ह मेपोटामियाक महेन्जोदारों में मिले आर्य-पभ्यता व साहित्यमे कदाचित् उसी प्रकार परिचित थे हैं। परन्तु इसका मूलस्थान कहां है, इन भारतीय और जिस प्रकार अाज भारतवर्षका कोई मजन तिब्बत या चीन मेमोपुटामियाके अंशोंमें क्या सम्बन्ध था, फिर इसका कब की भाषा व साहित्यके पण्डित हो । विश्वविजयी रावण और क्यों अंत हुश्रा, इसका कोई जवाब नहीं। तथा उनके भाई विभीषण के वेदोंके ज्ञाता होनेमें कोई (१) अमरीकामें माया लोगोंकी सभ्यता वहीं की। माश्चर्य नहीं परन्तु उस समय तक उन दक्षिणी देशोंकी अर्थात् बाहर नहीं पाई और यदि बाहरसे आई तो कहाँ जनतामें भार्य-सभ्यताका प्रकाश नहीं फैला था । भगवान् से, कब और किस रास्तेसे ? इसका कोई निश्चित उत्तर रामचन्द्र के दण्डक वनसे निकल किष्किन्धा तक पहुंचने महीं मिलता।। और फिर लंका विजयने पार्य-सभ्यताको फैलाकर आर्य
(६) भूतत्त्ववेत्ताओंका विचार है कि किसी समय एक पादों को सर्वव्यापी बना दिया।
महाद्वीप था जिसका नाम "गौडवाना" अथवा नीयरिया" यह बानर महाद्वीप कहां था ? यह प्रश्न बड़ा महत्त्व- था जो अफ्रीका और अमरीकाको मिजाता था और अब पूर्ण है। इसके यथावत् उत्तरसे संमारके इतिहासको वे समुद्र के गर्भ में है। भारतका दक्षिण प्रदेश, प्रास्ट्रेलिया व समस्याएं हल हो जाती हैं जिन्होंने बड़े बड़े इतिहासज्ञोंको निकटवर्ती द्वीपसमूह, लङ्का मेडेगास्कर इत्यादि इसके चक्कर में डाल रखा है। उदाहरण के लिये नीजिये--- अवशेष समझ जाते हैं। परन्तु इस महाद्वीपके लोगोंकी
(१) प्रार्यों का मूल निवास स्थान दुनिया भरमें चक्कर क्या सभ्यता थी और उसका क्या हुआ ? इसका पता लगाता फिरता है और फिर भी निश्चित तर नहीं मिलता। नहीं। अमरीकामें एक "लीवृरियन" समाज बनी है जिसतिब्बत, माइवेरिया, तुर्किस्तान, मध्य एशिया, उत्तरध्रव का कहना है कि सन् १९५३ के बाद फिर एक महान मध्य यूर, नोरवे-स्वीडन, फारम, मेमोपुटामिया, विश्व-युद्ध होगा। उसमें "जीयूरियन" सम्यताका प्रारम्भ भर्मीनिया, काकेशस, इत्यादि सभी प्रदेशोंमें भार्योंके जन्म- होगा और उस सभ्यताकी शिक्षा देनेका दावा वह सभा स्थानका भ्रम हो चुका है।
करती है, परन्तु इन बीयूरियनोका ऐतिहासिक प्रमाण (२) फारस और भारत भायोंमें विरोध हुआ था, प्राप्त नहीं।