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किरण १]
वानर-महाद्वीप
पुराणोंकी विशेषता
नहीं। क्योंकि उनकी बड़ी ऊंची सभ्यता थी बड़े इन सभी समस्यायोंका बना सन्दर समाधान हमारे बह राज्य थे, उन राज्योकी अच्छी व्यवस्था थी (बानरराज पुराणों में दिये हए इतिहाससे प्राप्त होता है, जो संमारकी बानीका मंत्रिमण्डन था जो राज्यका प्रवन्ध करता धा). किसी और पुस्तकसे नहीं मिलता। पुराणोंको बोगोंने
को बई-बडे इंजिनियर थे (बाल्मीकि रामायण में स्पष्ट उल्लेख गप्प समझ रखा है। परन्तु यह बड़ी भूल है। पुराण में
है कि नल और नीलने यन्त्रोंकी सहायता समुद्र पर पुन
कि वे कथाएँ हैं जो उनके लिखे जाने समय भारतीय इति- बनाया), और उनमें भगवान हनुमानसे योगी ज्ञानी थे हासके सम्बन्ध में प्रचलित थीं। उनके वर्णनमें अतिशयोक्ति (जो ऐसे सिद्ध थे कि श्राकाशमें उदमक, शरीरको भारी तथा क्रम-परिवर्तन होना स्वाभाविक है। परन्तु उनमें कल व हलका बना सके इत्यादि)। प्रस्तु, ये 'वानर" बनमें तत्व नहीं ऐसा ममममा निता यावापिका रहने वाले असभ्य मनुष्य कदापि नहीं थे। फिर उनको जिन बातोंका समर्थन यूनानी, पारमी इत्यादि विदेशी इति- '
बानर क्यों कहा जाता था! हासज्ञों द्वारा हो, जिनसे इन कठिन समस्याओंका संतोष
र भारतवर्षका दक्षिण प्रदेश पहले 'लीयूरिया' महाजनक उत्तर मिले उनका निरादर करना तो मायसे मांखें द्वापका भाग था। बान का देश भी दक्षिणा प्रदेश में था. बन्द करना है। पुराणों की एक विशेषताहिक मन्त्रों जहां रामजीकी उनमे भेंट हुई थी। इस महादीपको के तो विभिन्न विद्वान अनेक अर्थ करते हैं परन्तु पुरायांक 'लीयूरिया' इस लिये कहते हैं कि इसके निवामी सम्बनवमें भाषाकी ऐसी कठिनाई नहीं होती। अतएव जीयूर' के स्वरूप होते थे। 'लीयर' एक प्रकारका जहां इस विषयमें भिन्न मत हो सकते हैं कि वेदोंमें हति
बन्दर होता है। इसके निवासी बन्दरक समान मुख वाले हासका वर्णन है अथवा अध्यात्मका, वहां पुराणों में दिये
होते थे । संसारकी मुख्य धार जातियों में 'नमो' (हब्शी) हुए इतिहासमें ऐसी शङ्का नहीं की जा सकती।
जातिका मुख कुछ भागेको निकला हुआ होता है और पौराणिक इतिहास में हमको दो बाते बड़ी अद्भ। मिजतो कदाचत उ
कदाचित उसी जातिके किमी वंशभेदको 'लीय रयन' हैं। एक तो यह कि जब कभी मनुष्योंका वर्णन भाता है
कहते होंगे। नीग्रो अभी तक अफ्रीका अमरीका व प्रशांत तो उनके समकालीन देस्य दानव, देवता, गन्धर्व, गरुद,
महासागरके अन्य द्वीपोंमें पाये जाते हैं। परन्तु वे जायसर्प, किन्नर श्रादिका भी वर्णन है। अतएव यदि हम यह
रियन प्रमभ्य नहीं थे। ममय के चक्र में पड़कर नाम्रो मानि पता लगा सके कि देवता व देय कहाँ रहते थे तो उनके
अपनी सभ्यता व राज्य स्खो चुकी है परन्तु वह सदवसे सम्पर्कमें पाने वाले मनुष्यों अथवा बार्यों का मूल स्थान
असभ्य नहीं थी। अब भी भमरीकामें हम जा तक बड़े निश्चयपूर्वक बना सकेंगे।
बढ़े विद्वान व कार्य-कुशल बोग उपस्थित है। इससे यह दूसरी बात यह है कि वानर और राषपका उल्लेख
भी महजमें ही समझमें प्राता है कि इस जातिको हमारे पहले पहल श्रेतायुग में ही पाता है। भगवान रामही इतिहाममें बानर जानि क्यों कहा गया है। प्रस्न यह पहले सम्राट हैं, जिनको बानरों ऐसा गहरा सम्पर्क प्राप्त
'वानर महाद्वीप' वही 'जीयरिया महाद्वीप है जिसका हा हो। इसमे पार्योंके दक्षिणा में विस्तार व समयका अधिकांश भाग अब ममुद्र के भीतर है। निश्चय होता है तथा उपीके सहारे उमपे पूर्व के इतिहास जिम समय यह बानर महाद्वीप समुद्र से ऊपर था का भी समर्थन होता है।
उस समय दक्षिण-प्रदेश भारतके उतरी भाग पृथक यानर कोन थे?
था। हिमालय और विंध्याचल के बीच बड़े समुद्र थे। इस बानको लोग बन्दर कहा काते हैं। पूज्यपाद तुजसी. का प्रमाण भूतप्व-विज्ञानस भी मिलता है और पौराणिक दासजीने उनकी पूछों और नखों वर्णन किया है। इतिहास तथा ऋग्वेद' सेमी भूताव शासके अनुसार माधुनिक विचारके लोग बानरका अर्थ "बनमें रहने वाले लगभग २५ म १० हजार वर्ष पूर्व राजपूनाना और 'गङ्गा मनुष्य" करते हैं। तोक्या वे भोलोंके समान मनुष्य थे? जमुनी मैदान में दो बड़े 'भू-मध्यसागर' थे। कदाचित