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वंश परिचय विशेषताएं होती हैं, जिन्हें दस अंग कहते हैं । वह दस अंग यह हैं --क्षेत्र (माम मादि), वास्तु (घर), सुवर्ण (उत्तम धातुएं), पशु, दास (नौकर)। इन चार कायस्कंघ वाले स्थानों में वह जन्म लेते है,
और वह मित्रवान्, ज्ञातिमान्, उच्चगोत्र' वाले, कांतिमान्, अल्परोगी, महा बुद्धिमान् , कुलीन, यशस्वी तथा बलिष्ठ होते हैं। , · महान पुरुष मनुष्य जन्म लेकर प्रायः ऐसे कुल में उत्पन्न होते हैं, जो सदाचार सम्पन्न तथा वैभवशाली श्रेष्ठ कुल हो। इसी लिये उन्हें जातिवान् तथा कुलवान माना गया है। जैन शास्त्रों में 'जातिवान् तथा कुलवान् - उसे माना गया है, जिसके माता तथा पिता दोनों का कुलं पूर्णतया सदाचार सम्पन्न हो । माता के कुल का उच्च होना पिता के कुल की अपेक्षा कम आवश्यक नहीं है। यदि देवकी- उच्च कुलोत्पन्न न होती तो वह अपनी पाठवीं सन्तान की रक्षा के लिये अपने छै छै पुत्रों का बलिदात्त न कर देती। ऐसी अवस्था में वह कृष्ण जैसे प्रतापी पुत्र को कदापि जन्म नहीं दे सकती थी। महासती अञ्जनादेवी ने जब धर्म की रक्षा के लिये अनेक कष्ट सहे तभी उसकी कोख से हनुमान जैसे कर्मठ योद्धा ने जन्म लिया । महाभारत के "चक्रन्यूह में बलवीर अभिमन्यु द्वारा बड़े बड़े महारथियों के पराजित किये जाने का प्रधान कारण यही था कि उसके अर्जुन जैसे वीर पिता' तथा शत्रुमर्दिनी सुभद्रा जैसी उसकी वीरमाता 'थी। हमारे चरित्रनायक श्री सोहनलाल जी ने बाल्यावस्था में ही असाधारण कार्य किये थे। उनका कारण भी उनके माता-पिता का उत्सम तथा उच्चवंशीय होना ही था।
हमारे चरित्रनायक श्री सोहनलाल जी के पिता का शुस 'नाम शाह मथुरादास जी था। वह ओसवाल वंश के आभूषण
थे और अपनी जाति में सर्वप्रमुख माने जाते थे। उनका मूल 'निवासस्थान स्यालकोट नगर था। किन्तु एक बार स्यालकोट