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प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी - 'अरे ! इस प्रकार क्यों खड़ा है ?" .... - किन्तु वह उत्तर देने योग्य होता तो उत्तर देता। जब उसकी माताने उसे छू कर देखा तो उस को उसकी यथार्थ स्थिति का पता चला। अव तो वह बहुत घबरा कर तपस्वी मुनि इत्तचन्द जी से बोली
माता--महाराज! आपने इसे क्या कर दिया है ? मुनि-मैं इसे क्या करता । माता-महाराज यह अज्ञानी है। आप इसे क्षमा करें।
यह कह कर उसने तपस्वी मुनि रत्नचन्द जी की बहुत खुशामद की।
इस पर उन्होंने उसे स्तोत्र तथा मंगल पाठ आदि सुनाया। इससे उसके शरीर मे गति आई। अब उसको वहां से हटा कर चारपाई पर लेटा दिया गया। किन्तु उसके शरीर में निर्बलता तब भी बनी रही।
अब तो घर के सभी रहने वाले तपस्वी मुनि रत्नचन्द जी का अत्यधिक आदर सत्कार करने लगे । उसकी माता ने उनको श्राहार पानी दिया, जिसको ले कर वह युवाचार्य श्री काशीराम जी महाराज के पास आगए। इस घटना से सारा अटारी कस्बा सीधा हो गया और वह प्रत्येक साधु को सम्मानपूर्वक आहार पानी देने लगे।
पूज्य महाराज की आत्म शक्ति के यह थोड़े से उदाहरण है। वास्तव में घटनाएं इतनी अधिक है कि वह किसी एक व्यक्ति के अनुभव मे नहीं आ सकती थी। प्रत्येक व्यक्ति के अनुभव उनके सम्बन्ध मे पृथक २ है, जिनको सवसे पूछकर लिखना असम्भव है।