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प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी मुसलमान रहने दिया गया तो यह लोग जैनियों के कट्टर शत्र प्रमाणित होंगे। अतएव आपने यत्न करके उन सब को शुद्ध करके जैनी वना लिया और समानता के आधार पर बिरादरी । में सम्मलित कर दिया।
जिस प्रकार आपने धर्म विमुखों को शुद्ध करके जैन धर्म । में फिर सम्मलित करके स्थितिकरण अंग का पूर्ण रूपेण पालन - किया, उसी प्रकार आपने समाज की फजूलखर्ची को रोकने में , भी कस परिश्रम नहीं किया ।
फजूलखर्ची का सब से भयंकर रूप है, राजस्थान की नुकता प्रथा । इस प्रथा के अनुसार यदि किसी के यहां एक लड़का भी सर जाये तो बारह दिन तक तो उसे बिरादरी वालों को जिमाना पड़ता है। इस के पश्चात् उसे कई गांवों को जिमाना पड़ता है। अनेक बार तो ऐसा देखा जाता है कि इन . दाबतों मे घर की समस्त पूजी खर्च हो जाती है और घर की स्त्रियां निःसहाय होकर दाने दाने को मुहताज हो जाती हैं। कई बार उनके सिर पर इस कुप्रथा के कारण ऋण की बड़ी २ । राशियां चढ़ जाया करती है। अतएव युवाचार्य श्री काशीराम जी को जब इन कुरीतियों का पता लगा तो उन्होंने उनको समूल नष्ट कर देने के लिये उपदेश देना प्रारम्भ कर दिया।
आपने अपने उपदश द्वारा जांगल देश, मारवाड़ तथा मेवाड़ के अनेक नगरों में इस नुकता प्रथा को बंद कराया। जांगल देश के रामा मण्डी में तो आपके उपदेश का ऐसा भारी प्रभाव पड़ा कि वहां के अग्रवालों ने सभा करके जन्म से लेकर अत्येष्टि संस्कार तक की सभी कुरीतियों को बन्द कर दिया। वारात के