Book Title: Sohanlalji Pradhanacharya
Author(s): Chandrashekhar Shastri
Publisher: Sohanlal Jain Granthmala

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Page 446
________________ ४०६ प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जो ' बन भी गया तो सब लोग छुआछूत करके मुझ से घृणा करेंगे, जिसको मैं अपना अपमान संमझ कर सहन न कर सकेंगा। अभी तो इस्लाम बिरादरी में मेरा स्थान है, किन्तु जैनी बन जाने पर मैं ठीक धोवी के कुत्ते के समान न तो घर का और न घाट का ही रह पाऊंगा। __युवाचार्य-भाई ! यह बात तुम्हारी ठीक है। किन्तु यदि जैनी लोग तुम्हारे हाथ का भोजन खा कर तुमको समानता का पंद दें तब तो तुमको जैनी बनने में आपत्ति न होगी ? युवक-हां, नब मैं अपने पुराने धर्म में वापिस आ जाऊंगा। । ____ इस पर युवाचार्य श्री काशीराम जी महाराज ने कसूर के' प्रमुख जैन पंचों को बुला कर उन पर दवाव डाला कि वह उस युवक को शुद्ध करके समानता के आधार पर फिर अपनी जाति मे मिला ले । इस प्रकार एक जैन युवक मुसलमान बन कर भी आपके प्रयत्न से फिर जैन धर्म की शरण मे आ गया। xxxx जिस समय युवाचार्य जी जंडियाला गुरु में विहार कर रहे थे तो एक ठाकुर दास नामक व्यक्ति आपके पास आ कर कहने लगा "महाराज ! यहां बड़ा अत्याचार हो रहा है। एक जैन लड़के की मुसलमानों ने अमृतसर ले जाकर मुसलमान बना लिया है और उसका नाम गुलाम मुहम्मद रख दिया है।" युवाचार्य-उस के घर मे सबसे बड़ा कौन है ? ठाकुर दास- उमका पिता है । युवाचार्य-अच्छा उसे हमारे पास बुला कर लाओ।

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