Book Title: Sohanlalji Pradhanacharya
Author(s): Chandrashekhar Shastri
Publisher: Sohanlal Jain Granthmala

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Page 444
________________ ४०४ प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल' जी अनेक स्थानों पर भारी २ मतभेद दूर हो कर दोनों पक्ष श्रापम में प्रेमपूर्वक गले मिल जाते थे। पतितों का उद्धार करना आपके जीवन की विशेण्ता थी। हिन्दुओं के प्रायः सम्प्रदायों तथा दिगम्बर जैनियों में अभी तक यह प्रथा चली बाती है कि वह लंशमात्र भी सामाजिक अपराध का पता लगन पर अपराधी का जानिहिप्कृत कर देते है। वास्तव में उन लोगो का इसी नीति के कारण भारत में मुसलमानों की संख्या इतनी अधिक बढ़ गई। यदि यह लोग सम्यक्त्व के स्थितिकरण अंग पर आचरण करते ता आज भारत मे मुसलमानों की सख्या इतनी अधिक बढ़ कर हिन्दुओं की अनेक स्थानों मे ऐसी शोचनीय अवस्था न हो जाती। पूज्य श्री काशीराम जी महाराज अत्यधिक दूरदर्शी थे। भारत के अन्य भागों की अपेक्षा हिन्दुओं की इस संकीर्ण नीति के दुष्परिणाम पंजाब को अधिक मात्रा मे भोगने पड़ रहे थे। अतएव वहां तो इस सम्बन्ध में विशेष रूप से एक उदार नीति बरतने की आवश्यकता थी। पजाव का यह सौभाग्य था कि उसे अपने उस कठिन समय में पूज्य श्री काशाराम जी महाराज के रूप में एक योग्य नेता मिला। पूज्य काशीराम जी महाराज ने ऐसे अनेक धर्मच्युत व्यक्तियों को समाज मे पुनः सम्मिलित करके दसे बीसे आदि के झगड़ों को दूर करके सवको विरादरी मे सम्निलित कर दिया और उनको धार्मिक जीवन व्यतीत करने की सुविधा दी। यहां इस प्रकार के कुछ उदाहरणों को दिया जाता है कसूर में एक ओसवाल जेन मुसलमान बन गया था। वह कई वर्ष तक मुसलमान बना रहा और कसूर के जैनियों क कान पर जू तक न रेंगी। किन्तु जब युवाचार्य काशीराम जी

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