Book Title: Sohanlalji Pradhanacharya
Author(s): Chandrashekhar Shastri
Publisher: Sohanlal Jain Granthmala

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Page 460
________________ परिशिष्ठ श्रात्मा राम जो संवेगी का कुछ अन्य वर्णन (यह वर्णन पुस्तक समाप्त हो जाने के बाद मिलने के कारण सब से अन्त मे दिया जा रहा है। सम्पादक) आत्माराम जी के एक चातुर्मास के अवसर पर जंडियाला गुरु के एक स्थानकवासी श्रावक मोहर सिंह ने उनके पास आकर उनसे प्रश्न किया मोहर सिह-मैने सुना है कि आप कुछ लोगों से यह कहते हैं कि "मुख पत्ती है तो ठीक, किन्तु उसको हमेशा नहीं बांधना चाहिये" और कुछ लोगों से आप मुख पत्ती की निन्दा करते है और कहते हैं कि 'नंगे मुख न बोलने से मतलब है, मुखपत्ती हो या न हो, क्या यह बात सत्य है ? आत्मा राम जी-मैं कहने वाले का जिम्मेवार नहीं हूं। मोहर सिंह-क्या आप मुखवस्त्रिका को बांधना ठीक मानते है ? आत्मा राम-हां, बहुत कुछ ठीक मानता हूं। मोहर सिंह-तो कुछ कुछ ठीक नहीं भी मानते हैं ? आत्मा राम-ऐसा भी हो सकता है। मोहर सिंह-तो आपने जो मुख वस्त्रिका बांधी हुई है वह मावों से है, या उसमे कुछ कसर है ? हु stwo

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