Book Title: Sohanlalji Pradhanacharya
Author(s): Chandrashekhar Shastri
Publisher: Sohanlal Jain Granthmala

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Page 461
________________ परिशिष्ठ ४२१ . आत्ता राम-यदि मैं मुख वस्त्रिका न बांधू तो मेरे पास कौन आकर फंसे । आप जैसे बैलों को अपने बाड़े मे फसाने के लिये बांधनी ही पड़ती है। ___ मोहर सिंह-तब तो आपके ऊपर माया का पूरा दखल है और जहां माया है वहां साधुता का दिवाला है। आपने मुख वस्त्रिका लोगों को धोखा देने भर को बांधी हुई है। इस लिये आप को इसे उतार देना चाहिये, जिससे दुनिया धोखा न खावे । आपके चुंगल में फंसने वाले मनुष्य जन्म भर याद करके दुर्गति के पथगामी बनेगे। xxxx ___एक अन्य अवसर पर एक शिक्षित स्थानकवासी श्रावक ने आत्मा राम जी के पास आकर उनसे पूछा श्रावक-कहां तो आप के काय के जीवों की रक्षा किया करते थे और आज आप अपने सावध कार्यों में संयम का भी विचार नहीं रखते। आप जानते हैं कि सिद्धान्त ग्रन्थों में फूलों में जीव माने गए हैं, फिर भी आप मूर्ति पूजा के लिये फूल चढ़ाने का उपदेश देते हैं। क्या इसमे हिंसा नहीं होती ? __ आत्मा राम जी-पहिले मुझे फूलों में जीव दिखला दो। उसके बाद मैं तुमको उत्तर दूंगा। लाहौर जिले के पट्टी नामक नगर मे एक लाला घसीटा मल रहते ते । उन्होंने आत्मा राम जी के पास आकर उनसे कहा "आप वीस वर्ष से अधिक समय तक निर्ग्रन्थ मुनि बने रहे, किन्तु जब आपके शिथिलाचरण के कारण आपको श्वेताम्बर स्थानकवासी मुनि संघ से निकाल दिया

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