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श्रादर्श प्राचार्य परम योगी परम ज्ञानी, पूज्य सोहनलाल थे परम त्यागी परम ध्यानी पूज्य सोहनलाल थे
जैन जाति को जगाया, आपने जिन सन्त बन
था हृदय पावन अति, अमृत से मीठे थे बचन वीर वाणी विज्ञ थे, मर्मज्ञ थे साहित्य के गूढतम पाखण्ड तम के वास्ते आदित्य थे
जैन ज्योतिष से विचक्षणता भी पाई थी महां
गभीरता और धीरता की क्या-कहूं मैं खूबियां वैराग्यपूर्ण उग्रक्रिया आपकी विख्यात थी शान्ति समता सरलता की भी क्या बस बात थी
वाल ब्रह्मचारी क्षमाधारी महाभारी हुए
सुयशस्वी वर्चस्वी आदर्श उपकारी हुए बाईस वर्षों का बड़ा तप एकान्तर कर महा आपने अपनी बनाई खूब निर्मल आत्मा
अजमेर सम्मेलन मे गहरा श्राप श्री का हाथ था
जैन धर्मोद्योत का रहता फिकर दिन रात था देश देशान्तर मे झण्डा धर्म का लहरा दिया . दया दान करुणा का सबक संसार को सिखला दिया
सूत्र वचनों को न पलटा सन्मार्ग पर ही चले
पाप को लौकिक बनाकर पुण्य नहीं प्राणी छले दम्भ करनी में कुशल दया दान के जो शत्रु थे फांपते थे आपकी वेर विद्वत्ता और नाम से '
प्रति वर्ष अपना पाट उत्सव आप करवाते नथे . पाखण्ड और अभिमान के कुकृत्य ये भाते न थे'