Book Title: Sohanlalji Pradhanacharya
Author(s): Chandrashekhar Shastri
Publisher: Sohanlal Jain Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 464
________________ ४२४ । प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी पंचमी जाते समय नौकर न रखते साथ थे आप निर्भय सर्वथा संसार मे दिन रात थे अार्याओं से कभी आहार मंगवाते न थे उनसे स्वप्रति लेखना भी आप करवाते न थे गोचरी करते थे जब भी दोष पूरे टाल कर थे बने सरताज सबके शुद्ध संयम पालकर ' बांधकर वारी कभी आहार को लाते न थे एक घर एकान्तर व नित्य कभी जाते न थे साथ रखकर मार्ग में भोजन न भाइयों से लिया सूत्र वणित शुद्ध सयम आपने पालन किया आपके पुरखा भी इस रीति का पालन कर गए संघ सन्मुख आप भी आदर्श अनुपम धर गए चल रहे हैं आज भी सच्चे श्रवण इस राह पर ध्यान देते हैं नहीं जो झूठी वाह वाह पर आपकी महिमा सुनाए और क्या चन्दन मुनि श्राप थे संसार मे मुख्याचार्य शिरोमणि

Loading...

Page Navigation
1 ... 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473