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आपके उत्तराधिकारी
चातुर्मास था तो शतावधानी मुनि रत्नचन्द जी का चातुर्मास के बाद वहीं स्वर्गवास हो गया।
शतावधानी महाराज के स्वर्गवास के पश्चात् पूज्य श्री काशीराम जी महाराज का शरीर भी अधिक दिन नहीं चला ।
अन्त में पूज्य श्री काशीराम जी महाराज का ज्येष्ट बर्बाद अष्टमी संवत् २००२ तदनुसार ३ जून सन् १९४५ को अम्बाला में स्वर्गवास हो गया। ___ आपके स्वर्गवास के समाचार से जैन समाज एक दम शोक सागर में डूब गया। आपका बड़ा भव्य विमान बना कर चन्दन की लकड़ियों से अंत्येष्टि संस्कार किया गया। आपक ऊपर विभिन्न व्यक्तियों ने १७६ दुशाले डाले।
- इसके पश्चात् लुधियाना मे चैत्र शुक्ल त्रयोदशी संवत् २००३ को सन् १९४६ में एक बड़ा भारी पाट महोत्सव किया गया । इसमें उपाध्याय आत्माराम जी महाराज को पूज्य काशीराम जी महाराज के पाट पर बिठला कर आचार्य पद की चादर दी गई। इस अवसर पर निम्नलिखित पदवियां भी
दी गई
युवाचार्य-पंडित मुनि शुक्लचन्द जी महाराज । उपाध्याय-मुनि प्रेमचन्द जी महाराज। गणावच्छेदक-मुनि रामस्वरूप जी महाराज तथा
मुनि रोमसिंह जी महाराज। बहुसूत्री, मुनि नौबतराय जी महाराज । प्रसिद्ध वक्ता-श्री विमल मुनि जी महाराज ।