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महाप्रयाण
३४७ इस प्रकार आपके तीन दिन भी निकल चले।
आषाढ़ शुक्ला पंचमी को आप ने रात्रि के साढ़े तीन बजे के लगभग युवाचार्य श्री काशीराम जी महाराज को उठाया - और उनसे कहा * "प्रतिक्रमण प्रारम्भ करो।" तब युवाचार्यजी बोले "गुरुदेव ! अभी प्रतिक्रमण का समय नहीं हुआ।" तब पूज्य महाराज बोले "नहीं, अभी करो । आज समय ऐसा ही है।"
इस पर सब लोगों ने आपसे प्रतिक्रमण की आज्ञा लेकर अतिक्रमण प्रारम्भ कर दिया। प्रतिक्रमण लगभग पौने पांच बजे समाप्त हो गया।
प्रतिक्रमण के पश्चात् श्राप बोले
"मेरे वस्त्रों की प्रतिलेखना करके उन्हे भूमि पर बिछा दो।"
इस पर युवाचार्य जी बोले "गुरुदेव ! अभी तो आपकी तबियत ठीक है।" तब आपने उत्तर दिया "नहीं, अब ममय आ गया।"
इस पर आपके वस्त्रों की प्रतिलेखना करके उन्हे भूमि पर बिछा दिया गया। इसके पश्चात् आपने प्रथम सबको जो कुछ शिक्षा देनी थी वह देकर फिर निन्दना तथा आलोचना की। फिर आप युवाचार्य श्री काशीराम जी से बोले