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प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी __"मुझे संथारा करा दो। यह ध्यान रहे कि संथारा आरम्भ करने के बाद मुझ से कोई न बोले ।” । यह कह कर आप भूमि पर मुह ढक कर विधि सहित संथाना प्रारम्भ करके लेट गए। ऊपर के साधु आपको 'वृद्धालोचना' पाठ सुनाते रहे और आप मुह ढांक कर लेटे रहे
और किसी से कुछ भी नहीं वोले और न लेशमात्र भी हिले डुले । इस प्रकार आप ५।। बजे प्रात: काल से लेकर ८ बजे तक निश्चेष्ट तथा निःशब्द लेटे रहे ।
आपका आषाढ़ शुक्ला ६ संवत् १६६२ को सन् १९३५ ईस्वी मे प्रातः आठ बजे अमृतसर में स्वर्गवास हुआ। . आपके स्वर्गवास का का समाचार टेलीफोन तथा तार द्वारा पंजाब भर में वात को बात से फैल गया। आषाढ़ शुक्ला छट को वहां बड़ा भारी साया था, जिस से उस दिन सहस्रों विवाह हो रहे थे । पण्डित मुनि शुक्लचन्द जी महाराज इस समय नारोवाल मे धर्म प्रचार कर रहे थे। वहां भी एक बारात आई हुई थी, किन्तु उस बारात के सभी बाराती दूल्हे और उसके पिता को अकेला छोड़ कर अमृतसर चले गए। दूल्हे के भाई तक वारात मे नहीं ठहरे । प्राय: यही दशा और सब वारातों की भी हुई। इस प्रकार इस अवसर पर अमृतसर मे पजाब भर से जन समूह उमड़ पढ़ा । शव के आस पास प्रत्येक समय दर्शनार्थियों की भीड़ लगी रहती थी। पंजाब के अनेक भागों से इस बात का अनुरोध किया गया कि जब तक हम न आवे उनका विमान न उठाया जावे।
इस समय लाहौर के श्री संघ ने अमृतसर वालों से श्राग्रह किया कि