Book Title: Sohanlalji Pradhanacharya
Author(s): Chandrashekhar Shastri
Publisher: Sohanlal Jain Granthmala

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Page 441
________________ महाप्रयाण । ४०१ उसको पपीहा के समान स्वाति बूद के लिये तरसता हुआ छोड़कर स्वर्ग सिधार गया। - आपका जन्म सवत् १६०६ में तथा स्वर्गवास संवत् १६६२ में हुआ। इस प्रकार आपने कुल ८६ वर्ष की आयु पाई। आपने २७ वर्ष की आयु तक ब्रह्मचर्य और ५६ साल तक मुनि व्रत का पालन किया। इस बीच में २२ वर्ष तक तो आपने , लगातार एकान्तर किये । आप जन्म भर ब्रह्मचारी रहे । वास्तव में इस पंचम काल में आपके जैसा तप करना अत्यन्त कठिन है। आपने जिस धैर्य तथा साहस के साथ दीक्षा ( लेकर संयम का पालन किया वह अनुकरणीय तथा म्मरणीय ' है । आपकी फैलाई हुई ज्ञान ज्योति समस्त देश में अभी तक भी अपना प्रकारा फैला रही है। ___यह आपकी विशेषता थी कि आप मनुप्य के अन्तरात्मा । को पहचानते थे। अपने उसी नान के बल से आपने यह देख । लिया कि आपके द्वारा जलाई हुई, ज्ञान ज्योति को प्रज्वलित रखने का कार्य केवल युवाचार्य श्री काशीराम जी महाराज ही कर सकेंगे। इसलिये आपने एक सार्वजनिक पदवी दान महोत्सव में उनको युवाचार्य की पदवी देकर यह घोषणा कर दी थी कि , उनके वाद आचार्य पद श्री काशीराम जी महाराज को दिया जावेगा।

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