Book Title: Sohanlalji Pradhanacharya
Author(s): Chandrashekhar Shastri
Publisher: Sohanlal Jain Granthmala

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Page 440
________________ ४०० प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी सभी मुख्य मुख्य बाजार बन्द थे । श्राप के ऊपर लगभग १७६ दुशाले डाले गए। इस समय सारा अमृतसर शोक संतप्न हो रहा था। लोग ढाएं मार मार कर रो रहे थे। बात यह थी कि पूज्य महाराज के तीस वर्ष के निवास काल में लोग अत्यधिक समृद्ध बन कर मालामाल हो गए थे। उन के श्रद्धालु तो अत्यधिक धनी हो गए थे। अतएव पूज्य महाराज का वियोग होने पर उनका शोक करना उचित ही था। शव यात्रा का जुलूल आगे बढ़ता जाता था और सारा नगर शोक मे डूबता जाता था। जव शव यात्रा का जुलूस नगर से बाहिर निकला तो नगर मे बड़े जोर की वर्षा हुई। इस वर्षा की यह विशेषता रही कि नगर के वाहिर इसका लेशमात्र भी प्रभाव नहीं पड़ा और शव यात्रा का जुलूस सूखे का सूखा बना रहा। शव यात्रा का जुलून लगभग ५॥ बजे शाम को श्मशान भूमि में पहुंचा। वहां श्वेत तथा लाल चन्दन की एक अद्भुत चिता तैयार की गई। उसमे बीच बीच से गोला, किशमिश, मखाने, कमल गट्ट, सुपारी आदि अनेक सेवाओं का ढेर भी मिलाया गया। जिस समय आपके शव को स्वर्णमय विमान से उतार कर चिता पर रखा गया तो जलाने के स्थान पर मोना ही सोना बिखरा हुआ पाया गया । चिता मे आग दे दी गई और वह भव्य मूर्ति देखते ही देखते अदृश्य हो गई। इस प्रकार अमृतसर का वह लौभाग्यसूर्य उनको तीस वर्ष तक अपनी ज्योतिर्मय किरणों से प्राप्लावित करके नियति के गर्भ मे विलीन होकर अस्त हो गया। पजाव का वह उद्धारकर्ता उसको लगभग साठ वर्ष तक उपदेशामृत का पान कराकर

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