Book Title: Sohanlalji Pradhanacharya
Author(s): Chandrashekhar Shastri
Publisher: Sohanlal Jain Granthmala

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Page 435
________________ महाप्रयाण. . . . ३६५ । सन् १६६१. में आपकी क्लोम, ( Pancreas) ग्रन्थि बढ़ गई थी। यह ग्रन्थि बढ़कर मूत्र मार्ग को अवरुद्ध कर लेती है, जिससे मृत्र उतरना बंद हो जाता है। किन्तु मूत्रनाली में लोहे या रबड़ की नली डालने से यह ग्रन्थि पीछे को हट जाती है और मूत्र उक्त नली द्वारा बाहिर निकल जाता है । वृद्धावस्था में यह प्रन्थि प्रायः बढ़ जाया करती है, जिससे प्राय वृद्ध पुरुषों को मूत्र करने में अधिक समय लगा करता है। पूज्य श्री को भी यह रोग संवत् १६४१ में हो गया था और उनको नली द्वारा मूत्र कराया जाता था। किन्तु आप का औषधि सेवन करने का त्याग था। अतएव नली द्वारा मूत्र निकलवाने के अतिरिक्त आप इस रोग का.और कुछ भी उपचार नहीं करवाते थे। डाक्टर किशोर चन्द जी तथा •लाला मुनि लाल जी ने इस विषय मे पूज्य महाराज की निस्वार्थ भाव से बहुत समय तक सेवा की। आप का पेशाब नली द्वारा प्रायः यही दो सज्जन निकाला करते थे। आप लोगों के उपचार से तथा विविध प्रकार के प्राकृतिक प्रयोगों से पूज्य श्री की यह स्थिति बहुत कुछ ठीक हो गई। अस्तु पूज्य श्री का स्वर्गवास इस रोग से भी नहीं हुआ। वास्तव में पूज्य श्री के स्वर्गवास का तत्कालिक कारण कोई रोग न होकर उनकी आयु की समाप्ति ही थी। आयु समाप्त होने,पर सभी को शरीर छोड़ना पड़ता है और वही आपके साथ भी हुआ। वास्तव में पूज्य श्री ने अपने स्वर्गवास के समय की भविष्यवाणा तेरह मास पूर्व ही कर दी थी। एक बार बात चीत के प्रसंग में आपने अपने पोते शिष्य पंडित मुनि शुक्लचंद जी महाराज से कहा कि

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