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प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी इस पर पूज्य महाराज कदम चौंक पड़े । उन्होंने उस श्रावक को उत्तर दिया
"हमारी तबियत के कारण आप लोगों को चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं है। युवाचार्य जी को अभी स्यालकोट मे ही प्रचार करने दो। उन्हें यहां मत बुलाओ । मुझे अभी कोई खतरा नहीं है।"
इधर पूज्य महाराज के रोग का टेलीफोन पा कर युवाचाये श्री काशीराम जी महाराज तथा शतावधानी मुनि रत्नचन्द जी महाराज को स्यालकोट मे ठहरने का समाचार भी मिल गया । अस्तु आप वहां कुछ दिन और धर्म प्रचार करके लाहौर पधारे। स्यालकोट से लाहौर आने तक आपको कई दिन लग गए। उधर आपको स्यालकोट मे हो पूज्य महाराज का यह संदेश भी मिल गया था कि 'अभी कोई खतरा नहीं है । आने में जल्दी न करें।" ___ किन्तु जब आप दोनों लाहौर पधारे तो पूज्य महाराज ने कहा कि
"युवाचार्य जी तथा शतावधानी जी को अब बुलवा लिया
जावे
__ अस्तु आपको संदेश भेज दिया गया और युवाचार्य जी लाहौर से विहार करके जल्दी २ अमृतसर पहुँच गए ।
पूज्य श्री का स्वर्गवास किस रोग से हुआ यह निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता । यह पीछे बतलाया जा चुका है कि उनको वात रोग हो गया था, जिससे उनके हाथ पैर कांपा करते थे। किन्तु यह रोग सांघातिक कभी नहीं हुआ करता। । ।