Book Title: Sohanlalji Pradhanacharya
Author(s): Chandrashekhar Shastri
Publisher: Sohanlal Jain Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 425
________________ श्रात्म शक्ति ३८७ पूज्य श्री सोहनलाल जी महाराज की इतनी अधिक आत्म शक्ति का कारण न केवल उनकी विद्या थी, वरन उनका उच्चकोटि का तप था। जैसा कि इस ग्रन्थ में पीछे लिखा जा चुका है, वह तथा तपस्वी मुनि श्री गैडेराय जी महाराज अत्यन्त उच्चकोटि के तपस्वी थे। इसी लिये उनका आत्मा इतना निर्मल हो गया था कि उसमें उनको प्रत्येक बात स्पष्ट दिखलाई देती थी। यह पीछे बतलाया जा चुका है कि आप ज्योतिष शास्त्र के भी प्रकाण्ड पडित थे। ज्योतिष का उनको। केवल शास्त्रीय ज्ञान ही न होकर व्यवहारिक ज्ञान भी था । उनको प्रत्येक तारे की अाकाश में गति का अच्छा ज्ञान था। इसी कारण जब कभी रात्रि को आख खुलती थी, तो वह तारों के सम्बन्ध में कुछ सामान्य प्रश्न करके तत्काल ठीक २ समय बतला दिया करते थे। उनकी जीवनचर्या नपी तुली थी। जब भी उनको देखो वह स्वाध्याय करते हुए ही दिखलाई देते थे। यद्यपि उनका स्वर्गवास पर्याप्त बड़ी अवस्था में हुआ और उनके हाथ पैर तो प्रारम्भ से ही कांपने लगे थे, तो भी वह बैठते समय कभी भी सहारा लेकर नहीं बैठते थे। खान पान का उनका संयम तो आश्चर्यजनक था। वृद्धावस्था की निर्वलता में भी उन्होंने मिठाइयों का त्याग किया हुआ था। कुछ समय तक वह दृध के साथ मीठा लेते रहे, किन्तु बाद में उन्होंने मीठे का बिल्कुल त्याग करके फीका दूध ही लेना आरम्भ किया। बाद में तो उन्होंने दूध लेना भी कम कर दिया था। भोजन के सयम मे उन्होंने फुलका लेना भी बन्द कर दिया था। उम समय वह शाक अथवा शाक का पानी लिया करते थे। इममें भी यह विशेषता थी कि जो कुछ भी वह लेते चौबीस घटे में एक बार ही लेते थे। बाद मे ग्थारा करने पर तो उन्होंने कुछ भी नहीं लिया ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473