Book Title: Sohanlalji Pradhanacharya
Author(s): Chandrashekhar Shastri
Publisher: Sohanlal Jain Granthmala

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Page 423
________________ आत्म शक्ति ३८५ यह कह कर श्राप युवाचार्य श्री काशीराम जी महाराज को पहुंचाने के लिये उनके साथ लाहौर चले। मार्ग में अटारी नामक एक गांव आया। वहां के रहने वाले अत्यन्त कठोर थे। साधु संतों के साथ तो वह अत्यधिक दुव्र्यवहार किया करते थे। जब तक आप लोग अटारी ग्राम के पास आए गोचरी का समय हो गया । तब तपस्वी मुनि रत्नचंद जी युवाचार्य जी से बोले रत्नचन्द जी-पाप सन्तों सहित यहां पधारें। मैं गांव से गोचरी ला के अभी वापिस आता हूं। युवाचार्य-गोचरी करने तो आप चले जावें, किन्तु यहां के लिक्ख लोग बड़े कट्टर हैं। वह साधुओं का अपमान करने में नहीं चूकते। वह ऊंची हवेली वाला सिक्ख तो सन्तों को देख ही नहीं सकता। आप उसके घर गोचरी करने न जामा । तपस्वी मुनि रत्नचन्द जी युवाचार्य जी की बात का कोई उत्तर न देकर गोचरी करने चले गए। आप सीधे ऊंची हवेली वाले उसी सिक्ख के यहां पहुंचे, जो साधुओं के साथ विशेष रूप से दुर्व्यवहार किया करता था। जब आप उसके घर पहुंचे तो वह गंडासे से कुट्टी काट रहा था। आपको देखते ही यह अापके ऊपर गंडासा लेकर दौड़ा। किन्तु जिस समय उसने थाप पर गंडासा उठाया तो आप बोले "अच्छा, मार।" किन्तु यह कहते ही उसका हाथ जैसे का तैसा उठा हुआ ही रह गया। उसके शरीर के सब अङ्ग कीलित हो गए और उसके मुख से वाणी तक निकलनी बन्द होगई। उसकी माता ने जब उसकी यह दशा देखी तो वह उसको निश्चल खड़ा देख कर उससे वोली

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