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श्रात्म शक्ति
३८३ किन्तु दीक्षा ले कर वह उसके कठोर नियमों से शीघ्र ही घबरा गया। इसके बाद जब वह दिल्ली आया तो उसने मुनित्रत छोड़ दिया।
इसके दो एक माम बाद वह पडित मुनि शुक्लचन्द जी के पास दिल्ली की लेसवा गली में प्राकर दीक्षा देने की प्रार्थना फिर करने लगा। इस समय युवाचार्य श्री काशीराम जी महाराज भी वहीं थे। उनका नियम था कि पतित होने वाले को दुवारा दीक्षा न दी जावे। किन्तु पांडत मुनि शुक्लचन्द जी उसके भविष्य के विपय मे पूज्य महाराज से सुन चुके थे। अतच उन्होंने युवाचार्य जी को सहमत करके उसे दीक्षा दे दी। __इसके कुछ समय बाद वह कपूरथले मे आकर वहां मुनिव्रत फिर छोड़ बैठा । इसके बास दिन बाद अमृतसर में वह पडित मुनि शुक्लचन्द जी महाराज के पास फिर उपस्थित हुआ। उसने उनसे दीक्षा देने की फिर प्रार्थना की। पंडित शुक्लचन्द जी ने -पूज्य महाराज के पास आकर उनसे कहा ___ "गुरुदेव ! कानचन्द बैरागी के विषय में आपकी बात ठीक उतरी । वह दो बार दीक्षा छोड़ कर अब तीसरी बार दीक्षा मागने फिर आया है। आपकी इस में क्या सम्मति है ?
पूज्य महाराज-उसे दीक्षा देनी है तो जल्दी देदो। शुक्लचन्द जो-किन्तु मुहुर्त तो देख ले। पूज्य महाराज-मुहुर्त देखने मे फिर गड़बड़ी हो जावेगी।
पण्डित मुनि शुक्लचन्द जी मुहुर्त के विषय में सोचते ही रहे कि युवाचार्य श्री काशीराम जी महाराज का भिजवाया हुआ एक तार आपको मिला