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प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी आग्रहपूर्ण विनती को स्वीकार कर वहां चातुर्मास करने का निश्चय किया । यहां से श्राप वंगा तथा जैजों होते हुए होशियारपुर पधारे। ___ इस प्रकार आपका १६५७ का चातुर्मास होशियारपुर हुआ। इस वार होशियारपुर में संवेगी श्रात्माराम के शिष्य वल्लभ विजय का भी चातुर्मास था । वल्लभ विजय जी की आयु अभी कम थी। अतएव उन्होंने युवाचार्य श्री सोहनलालजी महाराज के माथ एक वकील से मध्यस्थता मे चर्चा की। यह वकील रायबहादुर कुन्दनलाल का बहनोई था। वकील का नाम देवीदयाल जी था । वह जगरांवां के निवासी थे। वल्लभ विजय जी को इस चर्चा में बुरी तरह निरुत्तर होना पड़ा ।
युवाचार्य महाराज चातुर्मास के बाद वहां से विहार करके फगवाड़ा, लुधियाना, रायकोट, जगरावां, भटिडा तथा बरनाला मे धर्म प्रचार करते हुए सुनाम आए। यहां आपने किशोरीलाल वैरागी को दीक्षा देकर उसे श्री विहारीलाल जी महाराज का शिष्य बनाया। यहां आपने मालेरकोटला के श्री संघ की विनती को स्वीकार कर वहां चातुमोस करने का निश्चय किया ।
वहां से विहार करके आप संगरूर, धूरी, भूलड़हेड़ी, भदलगढ़ तथा नाभा मे धर्म प्रचार करते हुए मालेरकोटला पधारें।
इस प्रकार संवत् १६५८ मे आपने मालेरकोटला में चातुमास किया। मालेरकोटला मे आपके व्याख्यानों की इतनी धूम मची कि सभी धर्म वालों पर उसकी प्रतिक्रिया हुई। आपके इस चातुर्मास से मौलवी अताउल्ला भी आपके दर्शन करने आया । एक कसाई को मौलवी अताउल्ला का आपकी