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प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी पूज्य महाराज विहार करके पन्द्रह वीस कदम ही चले होंगे कि उन्होंने उन सभी श्रावकों को अपने मार्ग में भूमि पर लेटे हुए पाया । इस दृश्य को देख कर उनके नेत्रों में प्रेमाश्रु उमड़ आए और वह उन श्रावकों से कहने लगे
"अच्छा, भाई ! तुम उठो। तुम्हारे अनुरोध को स्वीकार कर हम वापिस अमृतसर चलते हैं।”
पूज्य महाराज के मुख से यह शब्द निकलते ही सब श्रावक एक दम बोल उठे
"पूज्य श्री सोहनलाल जी महाराज की जय ।"
इसके पश्चात् पूज्य श्री उन श्रावकों के साथ ही जंडियाला से विहार कर वापिस अमृतसर पधार गए।
अमृतसर आकर यद्यपि आपकी पर्याप्त चिकित्सा कराई गई, किन्तु आपका जंघावल क्रमशः क्षीण से क्षीणतर ही होता रहा। इस प्रकार प्राप सवत् १६६२ से लेकर १६६२ तक 'लगातार तीस वर्ष तक अमृतसर रहे। आपके यह तीसों चातुर्मास अमृतसर से ही हुए।