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प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी थी। उसने उनको लड़की वाले का घर भी संकेत से बतला दिया। इसके पश्चात शुक्लचन्द्र जी अपने ऊंट पर बैठे हुए उस लड़की वाले के मकान को देखते हुए उसके सामने से निकले। लड़की के पिता ने उनको देखते ही पहिचान लिया। वह उनसे बोला
"आइये, आइये । आप इधर कैसे आ निकले ?"
शुक्लचन्द्र-मैं इधर ऊंट पर सैर करते हुए ऊंट वाले के साथ आया था कि यह मुझे इधर ले आया।
लड़की वाला-अब आप आ ही गए हैं तो कुछ देर विश्राम कीजिये और भोजन करके चले जावें। __ शुक्लचन्द्र--भोजन तो हम करके आए हैं। दूसरे हम घर बिना कहे मार्ग विना जाने इधर आए हैं। इसलिये हमारा इस समय यहां रुकना किसी प्रकार भी उचित नहीं है।
उसने कम से कम कुछ खा पी लेने का तो आप से बहुत कुछ आग्रह किया, किन्तु आप उसकी कोई बात स्वीकार न कर वहां से चल ही दिये । ‘लाचार वह भी आपके साथ साथ आपको पहुंचाने की दृष्टि से चला। __आप उसके साथ साथ चले आते थे और मन मे यह सोचते जाते थे कि विवाह का प्रसंग चला कर उससे किस प्रकार विवाह करने का निपेध कर । अन्त मे जब वह आपको गांव के बाहिर पहुंचा कर पीछे लौटने लगा तो उसने आप से कहा
"हमारा विचार अब के फाल्गुण में विवाह करने का है। यह आप अपने घर वालों से कह दे।"
इस पर शुक्लचन्द्र जी बोले