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प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी पूज्य श्री ने संवत १९८० मे अमृतसर में नैनीताल निवासी कान्हचन्द जी वैरागी को दीक्षा दी। वह जाति के ब्राह्मण थे।
संवत् १६८२ मे अमृतसर में लुहारासराय निवासी खूबचन्द जी बैरागी को दीक्षा देकर उनको दीपचन्द जी महाराज का शिष्य बनाया गया ।
सवत् १९८३ में पूज्य श्री की आना से युवाचार्य श्री काशीराम जी महाराज ने दिल्ली में उत्तर प्रदेश निवासी प्रकाशचन्द जी वैरागी को दीक्षा दी।
संवत १९८४ में अमृतसर मे लुहारासराय निवासी फूलचन्द जी बैरागो को दीक्षा देकर उनको मुनि दीपचन्द जी महाराज का शिष्य बनाया।
सवत् १९८५ मे पट्टी नगर मे टेकचन्द जी वैरागी को दीक्षा देकर उन्हे गैंडे राय जी महाराज का शिप्य बनाया गया।
यद्यपि इस पूरे समय भर पूज्य श्री सोहनलाल जी महाराज स्थिर रूप से अमृतसर मे विराजे रहे, किन्तु उनकी वृद्धावस्था के साथ २ उनकी निर्वलता भी बढ़ती जाती थी। अमृतसर जैन श्री संघ पूर्णं भक्ति भावना से उनकी सेवा का लाभ ले रहा था। एकाएक संवत् १९८५ मे श्री पूज्य महाराज की तवियत अधिक विगड़ गई। अव उनकी शारीरिक स्थिति अत्यधिक नाजुक हो गई। श्री पूज्य महाराज की सेवा करने के लिये युवाचार्य श्री काशीराम जी महाराज तथा महास्थविर मुनि गैडे राम जी महाराज भी उन दिनों अमृतसर मे ही विराजमान थे। पूज्य श्री के रोग का समाचार पाकर गणी उदयचन्द जी महाराज भी शीघ्र ही विहार क रके अमृतसर आ गए।